जीएम फसलों को अपनाने में देरी का सर्वाधिक नुकसान किसानों को हो रहा है- अशोक बालियान

भारत को अपनी खाद्य तेल की 70 प्रतिशत घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पाम, सोयाबीन और सनफ्लावर समेत विभिन्न किस्म के तेलों का आयात करना पड़ता है। भारत में सरसों की उत्पादकता लगभग एक टन प्रति हेक्टेयर है, जो कनाडा, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की तुलना में एक तिहाई है। भारत में जीएम सरसों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है।

अमेरिका में मक्का, सोयाबीन, कपास, कनोला, चुकंदर, पपीता, आलू; कनाडा में कनोला, सोयाबीन, चुकंदर; चीन में कपास, पपीता और पॉप्लर; अर्जेंटीना में सोयाबीन, मक्का, कपास; ब्राज़ील में सोयाबीन, मक्का, कपास और बांग्लादेश में बैंगन की जीएम खेती आधिकारिक रूप से होती है। अफ्रीका सहित कुछ अन्य देश हैं, जो केवल मक्का और कपास की जीएम खेती करते हैं। भारत में केवल बीटी कॉटन को सरकारी स्वीकृति मिली हुई है।

यूरोपीय आयोग (European Commission) ने तीन जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) मक्का किस्मों के आयात और उपयोग को मंजूरी दे दी है, जिससे अब इनका इस्तेमाल यूरोपीय संघ (EU) में पशु आहार और मानव खाद्य उत्पादों में किया जा सकेगा। यूरोपीय संघ में शामिल पाँच देश – स्पेन, पुर्तगाल, चेक गणराज्य, रोमानिया और स्लोवाकिया – काफी समय से जीएम मक्का उगाते हैं।

वर्ष 2025 में यूरोपीय आयोग के अनुसार, इन तीनों जीएम मक्का किस्मों की यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (EFSA) द्वारा कठोर वैज्ञानिक जांच की गई, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि इनका मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि वैज्ञानिक लगातार विज्ञान और नवाचार आधारित विकास की बात करते रहते हैं।

फ्रांस और जर्मनी सहित यूरोपीय संघ के उन्नीस देशों में जीएम खेती पर पूर्ण प्रतिबंध है। यूरोपीय संघ के देशों में विदेशों से आयातित खाद्य सामग्री पर यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि यह जीएम है या सामान्य, जबकि अमेरिका में ऐसा करना अनिवार्य नहीं है।

वर्ष 2014 में जर्मनी की गोटिंजेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पूरे विश्व में किए गए अपने कृषि सर्वेक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि जीएम प्रौद्योगिकी से फसलों की पैदावार में 22 प्रतिशत की वृद्धि होती है, कीटनाशक 37 प्रतिशत कम डालने पड़ते हैं और किसानों की आय 68 प्रतिशत बढ़ जाती है, तथा यह प्रौद्योगिकी विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के लिए अधिक लाभकारी है।

वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत में अमेरिका आधारित कंपनी मॉनसैंटो की बीटी कपास के बीज पर पेटेंट लागू करने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भारत में बीज पेटेंट के दायरे में नहीं आते और अमेरिकी पेटेंट कानून भारत में लागू नहीं होते।

देश के कुछ कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) टेक्नोलॉजी पर एक स्पष्ट नीति की जरूरत है। हमें इस तकनीक पर आगे बढ़ना है या नहीं, इसे साफ करने की जरूरत है, क्योंकि एक स्पष्ट नीति न होने के कारण किसानों को नुकसान हो रहा है।

भारत में आनुवांशिक रूप से संशोधित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति प्रदान करने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की शक्तियाँ बढ़ाई जाएँ, तथा उसे निर्णय लेने हेतु और अधिक स्वायत्तता दी जाए, ताकि वह आनुवंशिक रूप से संशोधित सूक्ष्मजीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति देने के अपने काम को बेहतर ढंग से कर सके। क्योंकि भारत में जीएम फसलों को अपनाने में देरी का सर्वाधिक नुकसान किसानों को हो रहा है।

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