झांसी मेडिकल कॉलेज में रविवार को एक बेहद चौंकाने वाली घटना सामने आई, जिसने मानवता को झकझोर कर रख दिया। जानकारी के अनुसार, उरई निवासी टीबी के गंभीर मरीज सुनील गुप्ता को डॉक्टरों ने पांच जून को वार्ड नंबर छह से तब छुट्टी दे दी, जब उनकी हालत चिंताजनक थी। यह फैसला मरीज के नाबालिग बेटे से सहमति लेकर लिया गया।
बताया जा रहा है कि डिस्चार्ज के बाद सुनील कॉलेज परिसर में बने आश्रय स्थल में दो दिन तक इलाज की आस में पड़े रहे, लेकिन समय पर उपचार न मिलने से शनिवार रात उनकी मौत हो गई। मामले के उजागर होते ही कॉलेज प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए जांच समिति का गठन किया है और तीन जूनियर डॉक्टरों को नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
मूल रूप से उरई के तुलसी नगर निवासी 45 वर्षीय सुनील गुप्ता टीबी से पीड़ित थे। हालत बिगड़ने पर तीन जून को पत्नी पिंकी गुप्ता, 11 वर्षीय बेटे वंश और चार वर्षीय बेटी के साथ उन्हें मेडिकल कॉलेज लाया गया था, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें वार्ड में भर्ती किया गया।
चार जून को पिंकी गुप्ता अपनी बेटी के साथ लापता हो गई, जिससे मासूम वंश अपने बीमार पिता की देखरेख के साथ-साथ मां को ढूंढने में भी लगा रहा। पांच जून को डॉक्टरों ने सुनील को छुट्टी देने का निर्णय लिया। वंश ने कई बार डॉक्टरों से गुहार लगाई कि उनके पिता को वापस घर न भेजा जाए, लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। उल्टा डॉक्टरों ने नाबालिग से एक सहमति पत्र लिखवाया और उस पर अंगूठे का निशान भी लगवा लिया।
इस पूरे मामले में लापरवाही की गंभीर आशंका को देखते हुए कॉलेज प्रशासन ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है।
– मयंक सिंह, प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज