मऊ सदर से पूर्व विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को मऊ की फास्ट ट्रैक कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजीव कुमार वत्स की अदालत ने भड़काऊ भाषण के मामले में दी गई दो साल की सजा को बरकरार रखते हुए उनकी अपील खारिज कर दी है। हालांकि, उन्हें मिली अंतरिम जमानत की अवधि को अदालत ने बढ़ा दिया है।
इससे पहले 31 मई को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत ने अब्बास को 2022 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान आपत्तिजनक भाषण देने का दोषी मानते हुए दो साल की कैद और 11,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसके बाद 1 जून को निर्वाचन आयोग ने उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी थी।
तीन अर्जियां दायर की थीं अब्बास ने
शासकीय अधिवक्ता अजय कुमार सिंह ने बताया कि अब्बास अंसारी की ओर से तीन अलग-अलग अर्जियां अदालत में दाखिल की गई थीं। इनमें पहली याचिका में अंतरिम जमानत को नियमित जमानत में बदलने की मांग की गई थी। दूसरी याचिका में दो साल की सजा पर रोक लगाने और तीसरी में दोषसिद्धि को रद्द करने की अपील की गई थी। अदालत ने नियमित जमानत को मंजूरी दी, लेकिन अन्य दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
यह प्रकरण 3 मार्च 2022 का है, जब मऊ के पहाड़पुरा मैदान में एक चुनावी जनसभा के दौरान अब्बास अंसारी ने कथित रूप से प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ तीखा बयान दिया था। उन्होंने मंच से कहा था कि सरकार बनने पर अधिकारियों का “हिसाब-किताब” किया जाएगा और उनकी तबादला-पोस्टिंग रोक दी जाएगी। इस बयान को उकसाने वाला मानते हुए मऊ कोतवाली में उपनिरीक्षक गंगाराम बिंद की तहरीर पर एफआईआर दर्ज की गई थी।
यह मुकदमा आईपीसी की धाराओं 506, 171एफ, 186, 189, 153ए और 120बी के अंतर्गत दर्ज किया गया था। मामले में अब्बास के भाई उमर अंसारी और चुनावी एजेंट मंसूर अंसारी भी नामजद थे। अदालत ने उमर को बरी कर दिया, जबकि अब्बास और मंसूर को दोषी ठहराया गया।
हाईकोर्ट में चुनौती देने का विकल्प
सत्र न्यायालय से राहत न मिलने के कारण अब अब्बास अंसारी के पास इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करने का रास्ता बचा है। चूंकि उनकी सजा बरकरार है, इसलिए उनकी विधानसभा सदस्यता बहाल होने की कोई संभावना नहीं बची है। सरकारी पक्ष ने अदालत के फैसले को पूरी तरह कानूनी और न्यायसंगत बताया है।
अब्बास अंसारी 2022 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के प्रत्याशी के रूप में मऊ सदर सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे। न्यायालय के इस फैसले के बाद पूर्वांचल की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।