उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू हो गई है, और सियासी दल अपनी रणनीतियाँ तैयार कर रहे हैं। 2017 में बीजेपी ने ओबीसी वोटों के सहारे सत्ता में वापसी की थी, और अब सपा के नेता अखिलेश यादव उसी रणनीति को अपनाते हुए बीजेपी को 2027 में सत्ता से बाहर करने की योजना बना रहे हैं। उनका मुख्य फोकस ओबीसी वोटबैंक पर है, जिसे बीजेपी ने अपनी मजबूत आधारशिला के रूप में इस्तेमाल किया है।
सपा अब ओबीसी की अलग-अलग जातियों को एकजुट करने में लगी हुई है और इसके लिए अखिलेश यादव ने उन्हें पक्के वादों के साथ आकर्षित करने का प्लान बनाया है, जो 2027 के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल होंगे। सपा की नजर अब बीजेपी के वोटबैंक पर है, खासकर उन जातियों पर, जिनके वोटों के सहारे बीजेपी ने 2017 में सत्ता प्राप्त की थी।
बीजेपी की तरह सपा भी ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक वोटों का एक गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है, जो उसे 2024 में मददगार साबित हुआ था। शनिवार को सपा ने नोनिया समाज के साथ बैठक की और भविष्य के लिए वादे किए। सपा की नजर राजभर और चौरसिया जैसी जातियों पर भी है, जिनसे पार्टी अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रही है।
राजभर समाज को साधने के लिए अखिलेश यादव ने लखनऊ में राजा सुहेलदेव की प्रतिमा लगाने की घोषणा की, जो कि इस समुदाय को लुभाने की सपा की रणनीति का हिस्सा है। इस तरह सपा राजभरों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है, जो पहले सुभासपा के साथ थे, लेकिन अब बीजेपी के साथ जुड़ गए हैं।
चौरसिया समाज पर भी सपा ने ध्यान केंद्रित किया है। अखिलेश यादव ने शिवदयाल चौरसिया के सम्मान में स्मारक बनाने का वादा किया, ताकि चौरसिया समाज के वोट भी सपा की ओर आकर्षित हो सकें। चौरसिया समाज की यूपी में 2 से 3 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, और इस समुदाय को अपने पक्ष में लाने के लिए सपा ने यह रणनीति अपनाई है।
बीजेपी की तरह सपा भी माइक्रो लेवल पर जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओबीसी और अन्य जातियों को जोड़कर अपनी जीत सुनिश्चित की थी, और अब सपा भी इसी रास्ते पर चल रही है। सपा अब ओबीसी जातियों की व्यापक हिस्सेदारी के साथ एक मजबूत चुनावी रणनीति तैयार कर रही है।