भूकंपीय गतिविधियों की दृष्टि से उत्तराखंड अत्यंत सक्रिय क्षेत्र माना जाता है, लेकिन अभी तक राज्य में पूर्व चेतावनी देने की कोई उन्नत प्रणाली विकसित नहीं हो सकी है। इसी पृष्ठभूमि में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने भूकंप के संभावित प्रभावों का विस्तृत आकलन किया। अध्ययन में सामने आया कि किसी बड़े भूकंप की स्थिति में गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों पर इसका असर अलग-अलग रहेगा, जिसमें गढ़वाल अधिक जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में उभरकर सामने आया है।
अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने पारंपरिक सेमी-एम्पिरिकल मॉडल में संशोधन करते हुए राज्य की भूमि संरचना, पूर्व में आए भूकंपों के आंकड़े और भूगर्भीय स्थितियों को आधार बनाया। इसमें उत्तरकाशी में 1991 में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप तथा नेपाल में 2011 के 5.4 तीव्रता वाले भूकंप का डेटा भी शामिल किया गया। इन आंकड़ों के उपयोग से एक नया स्ट्रांग ग्राउंड मोशन मॉडल तैयार किया गया, जिससे दोनों मंडलों में भूकंप के प्रभाव का तुलनात्मक आकलन संभव हुआ। यह शोध 2023 में 'जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस' में प्रकाशित हुआ था।
वैज्ञानिकों के सामने यह सवाल भी था कि गढ़वाल और कुमाऊं में भूकंप का असर अलग क्यों होगा। आगे किए गए अध्ययन में पाया गया कि दोनों क्षेत्रों की मिट्टी और भू-संरचना में बड़ा अंतर है। कुमाऊं में मलबे और पानी वाली सेमी-लिक्विड परत भूमि की सतह से करीब 7–8 मीटर नीचे मिलती है, जबकि गढ़वाल में यह परत 11–12 मीटर की गहराई पर स्थित है।
विशेषज्ञों के अनुसार, भूस्तर में सेमी-लिक्विड फ्ल्यूड की ऊपर वाली परत भूकंप की ऊर्जा को अधिक अवशोषित कर लेती है, जिससे झटकों का प्रभाव कम तीव्र होता है। इसके विपरीत, गहराई में स्थित परत कम ऊर्जा अवशोषित कर पाती है, जिसके कारण गढ़वाल में झटकों की तीव्रता बढ़ सकती है। इस आधार पर अध्ययन में गढ़वाल मंडल को अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील क्षेत्र माना गया है। यह दूसरा शोध 2024 में 'सॉयल डायनेमिक्स एंड अर्थक्वेक इंजीनियरिंग' पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
इन निष्कर्षों ने स्पष्ट कर दिया है कि उत्तराखंड में भूकंप जोखिम का भूगर्भीय आधार अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न है, जिसे ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबंधन और पूर्व चेतावनी तंत्र को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है।