देहरादून की हवा में जहर: वीकेंड पर बढ़ा प्रदूषण, 676 वाहन चालकों पर कार्रवाई

कभी अपनी स्वच्छ वायु और हरियाली के लिए पहचाने जाने वाले देहरादून की फिज़ा अब जहरीली होती जा रही है। गर्मियों की छुट्टियों और वीकेंड पर हजारों वाहनों की आवाजाही से उत्तराखंड की राजधानी में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, जो न केवल जनस्वास्थ्य बल्कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी गंभीर चुनौती बन चुका है।

प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर कार्रवाई

राज्य परिवहन विभाग द्वारा की गई हालिया कार्रवाई में 676 वाहनों के खिलाफ नियमों के उल्लंघन पर दो करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया गया है। ये वाहन अत्यधिक कार्बन मोनोऑक्साइड, पीएम 10, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अधजले हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन कर रहे थे, जिससे वायु गुणवत्ता में और गिरावट आ रही है।

दून घाटी पर छाई प्रदूषण की परत

पर्यटक सीजन में खासकर सप्ताहांत पर वाहनों की भारी आवाजाही से दून घाटी पर कार्बन और बारीक कणों की परत छा जाती है। पहले से ही खतरनाक स्तर पर मौजूद पीएम 10 और कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा में और बढ़ोतरी हो रही है, जिससे स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए हवा सांस लेने लायक नहीं रह गई है।

वायु गुणवत्ता पहले भी रही है चिंताजनक

देहरादून की वायु गुणवत्ता का संकट नया नहीं है। 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 31वां स्थान दिया था। 2017 में ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट में भी यह सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले भारतीय शहरों में शामिल रहा। यह शहर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत 132 ऐसे शहरी क्षेत्रों में शामिल है जो तय मानकों पर खरे नहीं उतरते।

स्वास्थ्य पर बढ़ता खतरा

हालांकि पिछले कुछ वर्षों में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में कुछ गिरावट आई है, फिर भी ये WHO और भारत सरकार द्वारा तय सुरक्षित मानकों से ऊपर हैं। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा अभी भी खतरनाक बनी हुई है, जिससे लोगों को आंखों और गले में जलन, सांस की समस्याएं और हृदय-फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं।

एक्सप्रेसवे से बढ़ी पर्यटकों की संख्या

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के कारण राजधानी तक पहुंचना पहले की तुलना में आसान हुआ है। इसका असर सप्ताहांत की भीड़ पर साफ नजर आता है, जिससे यातायात दबाव और प्रदूषण दोनों में बढ़ोतरी हुई है। सार्वजनिक परिवहन की सीमित व्यवस्था के कारण लोग निजी वाहनों पर निर्भर हो रहे हैं, जो पर्यावरण पर अतिरिक्त दबाव डाल रहा है।

पर्यटन: वरदान या अभिशाप?

उत्तराखंड में पर्यटन जहां आर्थिक लाभ और सांस्कृतिक आदान-प्रदान लाता है, वहीं यह राज्य के पर्यावरण पर गंभीर असर भी डाल रहा है। भारी मात्रा में ठोस कचरा, जलस्रोतों पर दबाव और जलवायु परिवर्तन संबंधी खतरों जैसे बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

समाधान की दिशा में ठोस रणनीति जरूरी

एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल का मानना है कि देहरादून को प्रदूषण संकट से उबारने के लिए एक समग्र योजना की आवश्यकता है। इसमें सार्वजनिक परिवहन के विस्तार, ट्रैफिक नियंत्रण, जनजागरूकता, अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यटन सीजन में संवेदनशील इलाकों में वाहनों की आवाजाही पर नियंत्रण जैसे उपाय शामिल होने चाहिए।

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