सुंदरलाल बहुगुणा से जुड़ी थीं मुज़फ़्फ़रनगर की यादें..!

प्रमुख गांधीवादी, पर्यावरणविद् तथा वनों की अंधाधुंध कटाई के विरुद्ध ‘चिपको आंदोलन’ के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का आज ऋषिकेश एम्स में कोरोना की बीमारी से निधन हो गया। उनका जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी के मरोड़ा ग्राम में हुआ था। बहुगुणा के जीवन पर महात्मा गांधी का विशेष प्रभाव था फलस्वरूप वे जीवन पर्यन्त पर्वतीय आंचल की सामाजिक कुरीतियों, स्त्री शोषण तथा वन्य सम्पदा के विनाश के विरूद्ध शांतिपूर्ण आंदोलन और जन जागरण करते रहे। वनों की अंधाधुंध कटाई के विरोध में उन्होंने ‘चिपको आंदोलन’ चलाया जो देशभर में चर्चित हुआ। ‘चिपको आंदोलन’ रैणी ग्राम से आरंभ हुआ जिसमें महिलाएं उन वृक्षों से चिपक जाती थी जिन्हें लकड़ी माफिया काटना चाहते थे। पहाड़ों के जनजीवन को शराब बुरी तरह बर्बाद करती थी। बहुगुणा जी ने सन् 1971 में शराबबंदी के लिए 16 दिन की भूख हड़ताल की थी। वे पहाड़ों पर विशाल बांध बनाने के पक्ष में नहीं थे। टिहरी बांध के निर्माण का भी उन्होंने कड़ा विरोध जताया था।

सुंदरलाल बहुगुणा मुज़फ़्फ़रनगर के सामाजिक कार्यकर्ता होती लाल शर्मा एडवोकेट के निमंत्रण पर कई बार मुज़फ़्फ़रनगर आये थे। हमें सन् 2002, 2005, 2008, 2012 में भाई होती लाल शर्मा जी के आवास पर बहुगुणा जी से भेंट करने का सौभाग्य मिला। शर्मा जी से बहुगुणा जी की पहली मुलाकात विनोबा जी के पवनार आश्रम में हुई थी जो प्रगाढ़ भाईचारे में तब्दील हो गई।

होती लाल शर्मा जी ने एक आश्चर्यजनक व रोमांचक घटना सुनाई थी कि वे बहुगुणा जी के साथ आंदोलन के दिनों में टिहरी से घनसाली जा रहे थे उन्हें सामने से एक शेर आता दिखाई दिया जिसे देख कर वे घबराकर बहुगुणा जी से लिपट गये। बहुगुणा जी ने शांत भाव से कहा – ‘डरो मत यह तो भगवान इस रूप में हमारा धन्यवाद देने आये हैं कि हम उनकी (वन्यजीवों की) रक्षा के लिए प्रयत्नशील है।’ और शेर चुपचाप गर्दन झुकाये दोनों के सामने से निकल गया।

बहुगुणा जी से संबंधित एक दु:खद घटना भी याद आती है। आंदोलन के दिनों में उनके पत्रकार पुत्र राजीव नयन अपनी पत्नी व पुत्र नंदू बहुगुणा के साथ टिहरी जा रहे थे कि छपार (मुज़फ़्फ़रनगर) में उनकी गाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो गई। दुर्भाग्य से नंदू की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। तब होती लाल शर्मा और वरिष्ठ अधिवक्ता जयप्रकाश आजाद ने सुंदरलाल बहुगुणा के पौत्र का मुज़फ़्फ़रनगर में अंतिम संस्कार कराया था। कुछ दिनों के बाद जब बहुगुणा जी मुज़फ़्फ़रनगर पहुंचे तो दुर्घटना के विषय में मात्र दो-तीन मिनट बात करने के बाद अपने मिशन की चर्चा में मशगूल हो गए। वास्तव में वे स्थितप्रज्ञ इंसान थे। उन्होंने कहा- हमें जीवित रहना है तो वन और वन्यजीवों की रक्षा करनी ही पड़ेगी। बहुगुणा जी सादा जीवन उच्च विचार की सचल मूर्ति थे। ऐसी महान आत्मा का बिछड़ना पूरे भारत की क्षति है। ‘देहात परिवार’ का शत् शत् नमन !

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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