कराची की नहीं रांची की बात करिये !

ग्रेड मास्टर से इशारा होते ही भारत में सेक्युलर-वादी बैंड और गंगा-जमुनी ऑर्केस्ट्रा एक साथ बजना शुरू हो गया। किसी ने यह भी नहीं पूछा कि आखिर किस शख्स के साथ टीवी डिबेट में नूपुर शर्मा ने मौलाना की किस बात से उत्तेजित होकर तथा कथित विवादित टिप्पणी की थी। नियम-कायदों-संविधान, जुडीसरी को ताख पर रखने वालों के लिए पुलिस, पब्लिक, घरों, दुकानों व मंदिरो पर हमले करना जायज है क्योंकि इनका निजाम इसकी इजाजत देता है। जब इन्हें कुछ चाहिए तो इन्हें भारत का संविधान और कानून याद आता है अन्यथा उन्हें तो तालिबानी तौर तरीके रास आते हैं।

लोग कराची में हनुमान मंदिर तोड़े जाने पर आक्रोश जताते हैं लेकिन रांची के मंदिरो और भद्रवाहा के वासुकी मंदिर तोड़ने और हिन्दुओं की आस्था पर चोट पहुंचाने वालों की पीठ थपथपाने वालों की ब्रिगेड खड़ी हो जाती है। जिसमे सेक्युलरवादी पत्रकार, स्तम्भकार, साहित्यकार, वकील एवं न्यायविद तथा राजनीति की दुकानें चलाने वाले, एनजीओ के माफिया देश-विदेश से फंड एकत्र करने वाले और कथित सोशल एक्टिविस्ट आदि शामिल हैं। 3 जून को कानपूर में पहले रिहर्सल की शुरुआत से लेकर आज तक किसी कथित धर्मनिरपेक्ष ने नियोजित हिंसा के विरुद्ध नहीं बोला। बोलेंगे भी नहीं क्योंकि अपना एजेंडा चलाने से बड़े खुश हैं।

जिन कथित बुद्धिजीवियों ने नूपुर शर्मा के पुतले को खम्बे पर लटकाने पर तालियां बजाई थीं वे सेक्युलरवादी पत्रकार सबा नकवी और मुनव्वर फारुकी द्वारा करोड़ों लोगों के आराध्य शिव पर अभद्र टिप्पिणिया करने पर ख़ुशी से उछल रहे थे, अब इनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज होते ही ठस्वे वहाने लगे। बेहयाई की भी कुछ हद होती होगी किन्तु इन कथित बुद्धिजीवियों की बेशर्मी की कोई सीमा नहीं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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