लठ्ठ की महिमा !

इन दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का एक वीडियो बहुत वायरल भी हो रहा है और विरोधी दलों के नेता तथा दलाल मीडिया इस बूढ़े भाजपाई नेता की खिंचाई भी खूब कर रहे हैं। वीडियो में खट्टर साहब यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि हमें हजार-हजार लठ्ठधारियों का समूह बनाना चाहिये जो उपद्रवी लठैतों या फावड़ा धारियों से अच्छे से निपट लें।

ऐसी बात खट्टर साहब ने क्यों कही? जब उनके हेलीकॉप्टर पर हमला हुआ, लठ्ठधारियों ने उनका मंच उखाड़ फेंका, उनके डिप्टी दुष्यंत चौटाला के आवास पर लठ्ठधारियों ने धावा बोला, उनकी पार्टी के विधायक अरुण नारंग के वस्त्र फाड़ कर उन्हें नंगा किया गया, विधायकों-सांसदों को लठ्ठधारियों द्वारा दौड़ाया गया, लालकिले की प्राचीर से पुलिसकर्मियों को उठा-उठा कर 20 फिट नीचे फेंका गया, अलीपुर के एस.एच.ओ का हाथ काटा गया, दस ग्यारह महीनों से लठ्ठ लहराये जा रहे हैं, बक्कल उतारें जा रहे हैं, तब तो खट्टर साहब मौन रहे।

अब शायद खट्टर साहब को लठ्ठ की महत्ता का अहसास हुआ है। बड़े-बुजुर्ग तो पहले से लठ्ठ की खूबियों का बखान करते आए हैं- बचपन में गिरधर की कुण्डलनी पढ़ी थी-

लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग।
लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग।
गहिरी नदि नारा जहाँ, तहाँ बचावै अंग॥
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता को मारै।
दुशमन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै॥

और भी खूबियां गिरधर कविराय ने बखानी हैं लेकिन फिलहाल तो इन्हीं पंक्तियों को समझने की ज़रूरत है। गोस्वामी जी ने मानस में बताया कि कैसे राम समुद्र से पार उतारने के लिए अनुनय विनय करते रहे लेकिन वह अपने गुरुर में तना रहा। तब राम ने लठ्ठ तो नही धनुष उठाया-

बिनय न मानत जलधि जड़,
गये तीनि दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीत॥

बहुत पहले बताया गया था- न खुशामंद से चलती है, न पुचकारने से चलती है, हुकूमत की गाड़ी महज़ डंडे से चलती हैं। ‘शठे शाठयम समाचरेत’ शासक की कामयाबी का हजारों वर्ष पुराना सूत्र है। खट्टर साहब को देर से समझ आई। अच्छा है पूंछ पाड़े जाने से पहले दिल्ली भी उसे समझ लें।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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