भारत को अंगरेजों की गुलामी से मुक्त कराने को देश के अनगिनत लोगों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था। भारत माता के इन सपूतों में एक अग्रणी नाम मुसरान एवं हाथरस रियासत से संबद्ध राजा महेंद्र प्रताप सिंह का है। वे मुसरान रियासत के राजा धनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र थे। उनका जन्म पहली दिसंबर 1886 में हुआ था। हाथरस के राजा दयाराम और मुसरान रजवाड़ों में आपसी मित्रता थी और दोनो रियासतें सन् 1817 में मिलकर अंगरेजों से लड़ी थे। हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के कोई पुत्र न था। उन्होंने राजा धनश्याम सिंह के पुत्र महेंद्र प्रताप को गोद ले लिया। हाथरस रियासत का आलीशान महल वृंदावन में था; महेंद्र प्रताप जी का शैशव वही बीता था।
राजा महेंद्र प्रताप का विवाह जींद एस्टेट की राजकुमारी से हुआ। इसी बीच कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें वे शामिल हुए। यही से राजा महेन्द्र प्रताप को देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिली। स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सेदारी के साथ ही शिक्षा के प्रसार और भारतीयों में भाईचारा, प्रेम, सौहार्द तथा सद्गुण अपनाने का संदेश फैलाने में जुट गए। उन्होंने वृंदावन में देश की पहली तकनीकी शिक्षा संस्था प्रेम महाविद्यालय खोली जिसके उद्घाटन समारोह में मदन मोहन मालवीय जी उपस्थित थे। राजा महेंद्र प्रताप ऋषि दयानंद के विचारों से प्रभावित थे। अतः आर्य समाज की स्थापना के लिए वृंदावन का अपना 80 एकड़ का विशाल बाग समाज को दान कर दिया।
उनकी धारणा थी कि आजादी के लिए विदेशी शक्ति का सहयोग लिया जाए वे स्वामी श्रद्धानन्द के ज्येष्ठ पुत्र हरिचंद के साथ बिना पासपोर्ट के जर्मनी चले गए। जहां जर्मनी के शासक कैसर से मिल कर भारत की आजादी में सहयोग मांगा। 1920 से 1946 तक वे विश्व में अनेक शासकों से मिले। 1915 में राजा महेंद्र प्रताप ने काबुल में निर्वासित भारत सरकार की स्थापना की जिसके वे राष्ट्रपति थे और मौलाना बरकतुल्ला खां प्रधानमंत्री थे। वे न केवल भारतीयों के बीच मैत्री चाहते थे वरन् पूरे विश्व में भाईचारा चाहते थे। उन्होंने विश्व मैत्री संघ नाम से एक संस्था स्थापित की थी। वे ‘संसार संघ’ के नाम से एक छोटी पत्रिका छापते थे।
मुजफ्फरनगर की मौल्हाहेड़ी रियासत में उनकी रिश्तेदारी थी। जहां वे कभी-कभी आते जाते थे। नगर के प्रमुख समाजसेवी कृष्णगोपाल अग्रवाल उनके सद्गुणों के कारण उनके बड़े प्रशंसक हैं। श्री अग्रवाल ने साठ के दशक में उनके सम्मान में टाउनहॉल में एक गोष्ठी भी कराई थी। साठ के दशक में वे ‘देहात भवन’ भी पधारे थे। राजा महेंद्र प्रताप प्रथम लोकसभा के सदस्य भी रहे। उनके महान व्यक्तित्व व समाज के प्रति योगदान को छोटे से लेख में समाहित करना संभव नहीं है। ऐसे महान राष्ट्र भक्त को हम उनके जन्मदिन पर श्रद्धापूर्वक नमन करते है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’