कोरोना लहर में नकारात्मक सोच का ज़हर!

भारतीय राजनीति के दो प्रमुख आधार स्तंभ है- मजहब और बिरादरी। तीसरा अस्थायी राजनीतिक हथियार है- संकटग्रस्त इंसान की मौत यानि आदमी की लाशें। हमारे नेताओं को राजनीति चमकाने में इंसानी लाशों का इस्तेमाल करने में कोई परहेज़, हिचक या शर्मिंदगी कबूल नहीं। कोरोना कि दूसरी लहर को लेकर देशभर में मचे हाहाकार को लेकर नेता, मीडिया और न्यायपालिका तक मुखर है। यह समय कोरोना की विभीषिका से बचने के उपायों में सहयोग का है, न कि जलती आग में भ्रम और उत्तेजना रूपी तेल डालकर स्थिति को अधिक भयावह बनाने का है।

जिन लोगों ने हर परिस्थिति में विरोध तथा नकारात्मक रवैया अपनाने की कसम खाई हुई है, वह स्थिति को बद से बदतर बनाने में जुट गए हैं। नेताओं के अलावा मीडिया का भी यही हाल है क्योंकि हंगामा बरपा करने से ही उनकी दुकानें चलती हैं। प्राय: सभी टी.वी चैनल संकट के नकारात्मक पहलू को पेश करने लगे हैं। इसके विपरीत जी. टी.वी तथा इंडिया टी.वी ने देश के प्रमुख चिकित्सकों का दृष्टिकोण प्रस्तुत कर संकट का धैर्य से सामना करने के रचनात्मक प्रयास किये। जी.टी.वी ने देश के शीर्ष चिकित्सकों- डॉ. रणदीप गुलेरिया, डॉ. नरेश त्रेहान, डॉ. सुनील कुमार एवं डॉ.नवीत विग के विचारों को देश के करोड़ों लोगों तक पहुंचाया। इसी प्रकार इंडिया टी.वी ने ऑक्सीजन, वैक्सीन तथा प्राणरक्षक औषधियों के विषय में चौबीसों घंटे किये गए प्रयासों पर प्रकाश डाला।

इस प्रकार अनवरत आने वाली भयंकर दिल दहलाने वाली खबरों की लहर के बीच इस आपातकाल में अपनी जान जोखिम में डालकर पीड़ितों की सेवा में जुटे योद्धाओं की कहानियां छाप कर वातावरण को सामान्य बनाने और विवेक से स्थिति का मुकाबला करने की प्रेरणा देने में कुछ समाचार पत्रों की भूमिका प्रशंसनीय है। आगरा का अमर उजाला प्रतिदिन ऐसे कोरोना योद्धाओं की गौरवगाथा निरंतर प्रकाशित कर रहा है जो इस दारुण कष्ट की घड़ियों में एक-एक पल जनसेवा में जुटे हैं। अमर उजाला तो ऐसे योद्धाओं के चित्र भी प्रकाशित करता है जो कोरोना संकट से जूझ रहे राष्ट्र हित में अपना अमूल्य सहयोग दे रहे हैं। इसी प्रकार हिंदुस्तान ने कानपुर के एम.आर सौरभ तिवारी तथा उनके सहयोगी शादाब एवं अर्चना दिक्षित की नि:स्वार्थ सेवा की सत्य कथा प्रकाशित की है कि इन लोगों ने किस प्रकार ऑक्सीजन गैस और सस्ती दवायें पीड़ितों तक पहुंचाकर अब तक 280 जिंदगियां बचाई है। मीडिया का यह रचनात्मक पक्ष निश्चित रूप से सराहनीय है।

यह उन लोगों को सबक है जो जनहित से भय एवं घबराहट तथा नफरत फ़ैलाने में जुटे हैं, किसी ने ठीक कहा है –

अंधकार को क्यूं धिक्कारें, अच्छा है एक दीप जला दें!

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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