बेटियों का पसीना करोड़ो की प्रेरणा बन गया !

कभी-कभी लेखक के जीवन में ऐसे क्षण भी आ जाते हैं जब उसी कलम से स्याही के बजाय आंसू की बूंदे स्रवित होने लगती हैं। ये बूंदे दु:ख की हो सकती हैं; हर्ष की भी हो सकती है और कृतज्ञता से अभिभूत भावुकता की प्रतीक भी हो सकती हैं। भारत की बेटियों की महिला हॉकी की टीम ने जिस प्रकार अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर देश का नाम उज्जवल करने में जो जी-तोड़ परिश्रम किया, उनके पसीने की एक-एक बूंद उनके देशप्रेम और पुरुषार्थ की कहानी कहती है। भले ही बेटियों ने पदक न जीता हो लेकिन देश के प्रति इनकी निष्ठा को देख समूचा राष्ट्र अपनी बेटियों पर गर्व कर रहा है।

सामान्यतः बाजी हारने वाली टीम को हर देश के लोग और वहां के हुक्मरां लानत- मलानत भेजते हैं। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम हार कर लौटती है तो हवाई जहाज से उतरते ही उस पर सड़े टमाटर व अंडे फेंकने का सिलसिला शुरू हो जाता है। चीन में पेइचिंग से रवाना करते हुए खिलाड़ियों को चेतावनी दी जाती है कि पदक नहीं लाये तो तुम्हारी जगह जेल में सुरक्षित है।

इसके पलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला हॉकी टीम की पराजय की दिल तोड़ने वाली ख़बर सुनकर फौरन टीम की कप्तान रानी रामपाल तथा अन्य खिलाड़ियों व कोच को अतिआत्मीयता से फोन पर सांत्वना दी। प्रधानमंत्री बेटियों को ऐसे दिलासा दे रहे थे जैसे घर का कोई बुजुर्ग परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले बच्चे की हौसला-अफ़जाई कर रहा हो। चंद्रयान की नाकामी पर भी श्री मोदी ने भारतीय वैज्ञानिकों का हौसला कायम रखने का उत्तरदायित्व निभाया था।

यह आचरण नेतृत्व की गंभीरता एवं देश के प्रति उसकी अटूट निष्ठा का परिचायक है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने पुरुष एवं महिला हॉकी टीमों को स्पॉन्सर करके अति सराहनीय कार्य किया, जिसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। इसी प्रकार हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने महिला टीम की सदस्यों को 50-50 लाख रुपये प्रदान करने का प्रशंसनीय निर्णय लिया है। आशा है भारतीय खिलाड़ियों को भविष्य की सफलता की आशा में ऐसे ही प्रोत्साहित किया जाता रहेगा।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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