उनके ये मंसूबे पूरे नहीं होंगे!

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी भी लगभग सात महीने शेष है किंतु अभी से ही राजनीतिक अखाड़े बंदी का दौर शुरू हो चुका है। चूंकि उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की अच्छी-खासी तादाद है इस लिए मुस्लिम धर्मगुरु, मुस्लिम धार्मिक संगठनों के मुखिया- पीर, खानकाहों, दरगाहों के सज्जादानशीन, तंजीमो और मुस्लिम वोटों के ओवैसी जैसे थोक सौदागर मुस्लिम वोटरों को बरगलाने में जुट गए हैं। जिस प्रकार सीएए व एनआरसी की आड़ लेकर देश में हुए विभिन्न चुनावों में इन लोगों ने मुस्लिम मतदाताओं को मुख्य राष्ट्रीय धारा से निकाल कर मज़हबी भावनाओं को भड़का के डर, खौफ़ दिखा के चुनाव लड़ा, ठीक वैसे ही ये उत्तर प्रदेश में भी तास्सुब व टकराव का माहौल बना कर चुनाव जीतने की कोशिश में है।

ओवैसी उत्तर प्रदेश में खुले आम कहते फिर रहे हैं- हिंदुस्तान पर आठ सौ साल हुकूमत करने वाले ताश के पत्तों की तरह गुलाम नहीं, बादशाह बनें और चुनाव में रिंग मास्टर बन कर वोट का चाबुक चला के पुरानी ताकत व रुतबा हासिल करें।

ओवैसी के पास सीएए, एनआरसी व तीन तलाक के नाकामयाब हो चुके भोथरे मुद्दों के अलावा मुस्लिम छात्राओं को सरकारी वजीफा देने तथा महिलाओं के सशक्तिकरण के सरकारी प्रावधानों का नया मुद्दा भी हैं। वे अपने जलसों व इंटरव्यू में कहते फिर रहे हैं तीन तलाक कानून बनाने के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई का फंड मुहय्या करके नारी सशक्तिकरण के नाम पर उन्हें गुलाम बनाना चाहती है। सवाल है कि क्या 21वीं सदी के दौर में मुस्लिम समाज की हमारी बहन-बेटियां इस तरह की शोबदेबाज़ी और चुनावी हथकंडों के फंदे में फंस जायेंगी?

चुनावों में मुस्लिम वोट किधर जायेगा, यह सवाल नहीं है। प्रश्न है कि यदि सरकार दकियानूसी माहौल व हैवानियत भरे तौर तरीकों से मुस्लिम बहनों को बाहर निकालना चाहती है तो ओवैसी जैसे लोग क्यूं बौखलाये हुवे है। क्या वह चाहते हैं कि जिस प्रकार पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के आतंकियों ने सूबे के लड़कियों के स्कूलों में बमबारी व आगजनी करके उन्हें बन्द कर दिया था, वैसे ही शेष भारत के शिक्षा संस्थान में किया जाए और मुस्लिम लड़कियों को इंजीनियरिंग, डॉक्टरी तथा अन्य आधुनिक विषयों की शिक्षा से मरहूम कर दिया जाए? ये जुनूनी लोग चाहे जितना ज़ोर लगा लें, हिंदुस्तान को तालिबान नहीं बनने दिया जाएगा।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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