जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा है कि मार्च 2006 में वाराणसी के मंदिरो व बाज़ारों में साईकिल बमों के जरिये 18 निर्दोष लोगों की हत्या करने और 76 लोगों को घायल करने वाले फांसी की सजा पाये आतंकी वलीउल्लाह को सजा से बचाने के लिए जमियत उसे क़ानूनी सहायता प्रदान करेगी।
ये वही महमूद मदनी हैं जिन्होंने 28-29 मई को जमियत के सम्मलेन में कहा था कि हिंदुस्तान में मुसलमान का सड़कों पर निकलना दुश्वार है। मुसलमान अब इन ज्यादतियों को सिर झुका कर स्वीकार नहीं करेगा।
अधिवेशन के दूसरे और अंतिम दिन अन्य प्रस्तावों के साथ यह प्रस्ताव भी पास हुआ था कि जिन लोगों को आतंकवाद के झूठे मामलों में फंसाया गया है उनको क़ानूनी सुरक्षा प्रदान करने को जमियत स्थायी क़ानूनी सैल गठित करेगी। देश में जहां भी आतंकियों पर क़ानूनी कारवाही होती है, वहां जमियत आतंकियों को बेगुनाह बता कर उनकी रक्षा करने पहुंच जाती है। इतना ही नहीं, जो लड़के लव जिहाद के मामले में पकड़े गए, अदालतों में उनकी पैरोकारी करने के साथ- साथ उनके परिवारों को भरपूर आर्थिक मदद भी देती है।
आतंकियों तथा साम्प्रदायिक घृणा फ़ैलाने वालों की मदद का यह अनोखा उदाहरण केवल भारत में ही मिलेगा। जमियत ही क्यों, वोट बैंक की राजनीति करने वाली राजनीतिक पार्टियां भी उनके साथ खड़ी दिखती हैं। आतंकी संगठन सिमी के सदस्यों को बचाने के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार ने इनके लंबित मुक़दमे वापिस लेने की हिमाकत की थी। यही दृष्टिकोण कांग्रेस, बसपा, एनसीपी व वामदलों का है।
इस स्थिति से निपटने के लिए पूरे समाज को सावधान और सशक्त रहने की जरूरत है।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’