वस्तु एवं सेवा कर (GST) के आठ वर्ष पूरे होने पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए इसे टैक्स सुधार की बजाय ‘आर्थिक अन्याय’ और ‘कॉर्पोरेट संरक्षित प्रणाली’ का उपकरण करार दिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा जीएसटी ढांचा गरीबों को दंडित करने, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को दबाने और राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर करने के लिए बनाया गया है, जबकि इसका लाभ चंद उद्योगपति मित्रों को मिलता रहा है।
राहुल गांधी ने कहा कि जनता से ‘गुड एंड सिंपल टैक्स’ का वादा किया गया था, लेकिन देश को एक ऐसी कर प्रणाली मिली जिसमें पांच अलग-अलग स्लैब हैं और जिसे अब तक 900 से ज्यादा बार संशोधित किया जा चुका है। उन्होंने तंज करते हुए कहा कि कारमेल पॉपकॉर्न और क्रीम बन्स जैसे उत्पाद भी इस जटिल कर ढांचे के जाल में उलझ चुके हैं।
छोटे कारोबारियों पर बोझ, बड़े कॉरपोरेट को छूट
राहुल का कहना था कि जीएसटी प्रणाली की जटिलता और नौकरशाही का बोझ बड़े कॉरपोरेट समूहों के पक्ष में काम करता है, जिनके पास कुशल एकाउंटेंट्स की टीम होती है। दूसरी ओर, छोटे व्यापारी, दुकानदार और एमएसएमई इस जटिल व्यवस्था में फंसे हुए हैं। उन्होंने जीएसटी पोर्टल को “उत्पीड़न का साधन” करार दिया।
उन्होंने दावा किया कि जीएसटी लागू होने के बाद से अब तक 18 लाख से अधिक एमएसएमई इकाइयां बंद हो चुकी हैं। आम नागरिक अब चाय से लेकर स्वास्थ्य बीमा तक हर चीज पर जीएसटी चुका रहा है, जबकि बड़ी कंपनियों को हर साल 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कर छूट मिल रही है।
पेट्रोल-डीजल जीएसटी से बाहर रखने पर सवाल
राहुल गांधी ने पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने को भी सवालों के घेरे में रखा। उनका कहना था कि इससे किसानों, ट्रांसपोर्ट सेक्टर और आम जनता को प्रतिकूल प्रभाव झेलना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि गैर-भाजपा शासित राज्यों के जीएसटी बकाया को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, जो केंद्र की ‘संघीय ढांचे के खिलाफ मानसिकता’ को दर्शाता है।
GST को बताया UPA सरकार का मूल विचार
राहुल गांधी ने कहा कि जीएसटी मूल रूप से यूपीए सरकार का दूरदर्शी विचार था, जिसका मकसद देश के कर ढांचे को सरल बनाना और एकीकृत बाजार की स्थापना करना था। लेकिन वर्तमान सरकार ने इसके स्वरूप को विकृत कर दिया। उन्होंने कहा कि एक प्रभावी जीएसटी प्रणाली वह होनी चाहिए जो जनहित को प्राथमिकता दे, कारोबार के अनुकूल हो और संघीय भावना को मजबूत करे।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत को ऐसे टैक्स सिस्टम की आवश्यकता है जो केवल चुनिंदा लोगों के लिए नहीं, बल्कि हर वर्ग के लिए काम करे, ताकि छोटे दुकानदार, किसान और आम नागरिक भी देश की प्रगति में समान भागीदारी निभा सकें।