ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ता तनाव अब ऐसे मोड़ पर है, जहां इसके दुष्प्रभाव भारत के लिए भी गंभीर हो सकते हैं। जानकारों का मानना है कि अगर यह संघर्ष और बढ़ा, तो भारत का पश्चिम एशिया के देशों के साथ व्यापार प्रभावित होगा—जिसमें ईरान, इराक, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और यमन शामिल हैं। भारत इन देशों से सालाना करीब 33.1 अरब डॉलर का आयात और 8.6 अरब डॉलर का निर्यात करता है।
व्यापार पर असर गहराने की आशंका
मुंबई स्थित टेक्नोक्राफ्ट इंडस्ट्रीज के संस्थापक शरद कुमार सराफ के अनुसार, इस युद्ध के कारण भारत के निर्यात पर ‘कैस्केडिंग इफेक्ट’ देखने को मिलेगा। उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी ने फिलहाल ईरान और इज़राइल को माल भेजना रोक दिया है।
भारत से क्या जाता है?
2024-25 के दौरान भारत ने ईरान को लगभग 1.24 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें मुख्य रूप से बासमती चावल, केले, सोया मील, चना और चाय जैसे कृषि उत्पाद शामिल थे। वहीं, इज़राइल के साथ व्यापार 2.1 अरब डॉलर (निर्यात) और 1.6 अरब डॉलर (आयात) का रहा।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के मुताबिक, ईरान और इज़राइल पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते आर्थिक दबाव में हैं। युद्ध के चलते अब भुगतान तंत्र और माल ढुलाई और भी जटिल हो सकती है।
ऊर्जा आपूर्ति पर मंडरा रहा खतरा
भारत की सबसे बड़ी चिंता हॉर्मुज जलडमरूमध्य को लेकर है, जहां से देश को मिलने वाला 60-65% कच्चा तेल गुजरता है। यदि ईरान इस मार्ग को अवरुद्ध करता है, तो यह भारत की ऊर्जा आपूर्ति के लिए बड़ा झटका होगा। यह जलमार्ग वैश्विक तेल व्यापार का लगभग 20% नियंत्रित करता है।
अगर आपूर्ति बाधित हुई, तो भारत में ईंधन की कीमतें बढ़ेंगी, महंगाई बढ़ेगी, रुपये की कीमत गिरेगी और वित्तीय असंतुलन की स्थिति बन सकती है।
पहले से जूझ रहा है व्यापारिक तंत्र
रेड सी मार्ग पर पहले ही हूथी विद्रोहियों के हमलों के कारण भारत-यूरोप और भारत-अमेरिका व्यापार प्रभावित हुआ है। भारत का 80% यूरोपीय व्यापार और कुल निर्यात का 34% इन्हीं समुद्री मार्गों से होता है। WTO ने चेतावनी दी है कि 2025 में वैश्विक व्यापार वृद्धि 0.2% तक सिमट सकती है, जो पहले 2.7% अनुमानित थी।
भारत की कूटनीतिक चुनौती
भारत के लिए यह परिस्थिति इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि वह ईरान के साथ ऐतिहासिक और रणनीतिक रिश्ते रखता है—चाबहार पोर्ट इसका उदाहरण है। वहीं, भारत अमेरिका, खाड़ी देशों और इज़राइल के साथ भी मजबूत रिश्ते साझा करता है। ऐसे में संतुलन बनाए रखना भारत की कूटनीतिक रणनीति के लिए एक बड़ी परीक्षा बन चुका है।