तिब्बतियों के बीच लंबे समय से यह सवाल बना हुआ है कि अगला दलाई लामा कौन होगा। अब यह मुद्दा भारत और चीन के बीच भी चर्चा और विवाद का कारण बन गया है। चीन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भावी दलाई लामा को उसकी अनुमति से ही मान्यता मिलेगी। वहीं भारत सरकार ने इसे सिरे से खारिज करते हुए दो-टूक कहा है कि उत्तराधिकारी तय करने का अधिकार किसी तीसरे पक्ष को नहीं है।
केवल दलाई लामा और संस्था को ही है अधिकार: रीजीजू
गुरुवार को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने इस विवाद पर स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का निर्णय केवल दलाई लामा और उनकी संस्था द्वारा ही किया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस प्रक्रिया में किसी भी अन्य देश या संस्था की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
गादेन फोडरंग ट्रस्ट करेगा उत्तराधिकारी की पुष्टि
बुधवार को 14वें दलाई लामा ने भी अपने बयान में कहा था कि उनकी संस्था गादेन फोडरंग ट्रस्ट ही उनके उत्तराधिकारी को मान्यता देगी। यह ट्रस्ट 2015 में स्थापित किया गया था। दलाई लामा की यह घोषणा ऐसे समय आई है जब उनके 90वें जन्मदिन (7 जुलाई) से पहले ही चीन की प्रतिक्रिया सामने आ चुकी है।
भारत सरकार की ओर से धर्मशाला में प्रतिनिधित्व
दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस समारोह में भारत सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू और राजीव रंजन सिंह धर्मशाला पहुंचेंगे। रीजीजू ने कहा कि दलाई लामा न केवल बौद्ध अनुयायियों के लिए बल्कि पूरी नालंदा परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके उत्तराधिकारी के चयन में परंपराओं और उनकी इच्छा का ही पालन किया जाना चाहिए।
चीन ने जताई आपत्ति
चीन की विदेश मंत्रालय प्रवक्ता माओ निंग ने दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उत्तराधिकारी की प्रक्रिया ‘स्वर्ण कलश’ परंपरा और सरकारी मंजूरी के तहत होनी चाहिए। चीन पहले भी दलाई लामा की प्रक्रिया को खारिज कर चुका है और इस पर उसका रुख लगातार सख्त रहा है।
1959 से धर्मशाला में हैं दलाई लामा
गौरतलब है कि 1959 में जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया था, तब दलाई लामा भारत आ गए थे। उनके साथ बड़ी संख्या में तिब्बती भी भारत पहुंचे थे। तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासन में रह रहे हैं। उनकी उपस्थिति भारत-चीन संबंधों में समय-समय पर तनाव का विषय रही है।