नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) द्वारा NEET UG 2025 का परिणाम 14 जून को घोषित किया गया था। परीक्षा में सफल अभ्यर्थी अब काउंसलिंग प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। इसी बीच, परीक्षा में सफल छात्र शिवम गांधी रैना ने नीट यूजी की अंतिम उत्तर कुंजी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
याचिका में रैना ने दावा किया है कि तीन प्रश्नों के उत्तर गलत हैं, जिन्हें अंतिम उत्तर कुंजी में नहीं हटाया गया। इसके चलते उनकी रैंक पर नकारात्मक असर पड़ा है। उन्होंने अदालत से काउंसलिंग पर रोक लगाने, उत्तर कुंजी की दोबारा समीक्षा करवाने और संशोधित परिणाम जारी करने की मांग की है।
कौन-कौन से प्रश्न हैं विवाद में
याचिकाकर्ता शिवम रैना ने याचिका में बताया कि प्रश्न संख्या 52, 136 और 140 के उत्तर उत्तर पुस्तिका में गलत दिए गए हैं। उन्होंने विशेष रूप से सवाल संख्या 136 (कोड 47) का ज़िक्र करते हुए कहा कि एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में मौजूद स्पष्ट तथ्यों के बावजूद इस प्रश्न का उत्तर नहीं बदला गया।
याचिका में उनके अधिवक्ता सार्थक चतुर्वेदी ने तर्क दिया कि कक्षा 11 की जीव विज्ञान पुस्तक के पृष्ठ 245 पर स्पष्ट उल्लेख है कि एड्रीनल कॉर्टिकल हार्मोन हृदय की गति को नियंत्रित करते हैं। इसके बावजूद एनटीए ने उस साक्ष्य को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने बताया कि 4 जून को छात्र ने एनसीईआरटी के हवाले से आपत्तियां दर्ज करवाई थीं, लेकिन फाइनल उत्तर कुंजी में कोई संशोधन नहीं किया गया और उसी आधार पर परिणाम घोषित कर दिया गया।
छात्र को पांच अंकों का हुआ नुकसान
शिवम रैना ने बताया कि गलत उत्तरों के चलते उन्हें कुल पांच अंकों का नुकसान हुआ है—चार अंक प्रश्न के गलत उत्तर के कारण और एक अंक निगेटिव मार्किंग की वजह से। इस कारण उन्हें 565 अंक प्राप्त हुए हैं, जिससे उनकी ऑल इंडिया रैंक 6783 और जनरल कैटेगरी में रैंक 3195 आई है। उनका कहना है कि यदि उन्हें सही अंक मिलते तो उनकी रैंक में सुधार होता और बेहतर मेडिकल कॉलेज में प्रवेश संभव होता।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी निगाहें
याचिका में छात्र ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह NEET UG 2025 की काउंसलिंग पर फिलहाल अस्थायी रोक लगाए, उत्तर कुंजी की पुनः जांच करवाई जाए, गलत उत्तरों के लिए बोनस अंक दिए जाएं और संशोधित रिजल्ट जारी किया जाए। अब इस मामले में सभी की नजर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर टिकी है। माना जा रहा है कि यदि निर्णय समय पर नहीं आता, तो याचिकाकर्ता समेत कई छात्रों का एक साल प्रभावित हो सकता है।