पीलीभीत। नेपाल सीमा से लगे उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के ग्रामीण इलाकों में आर्थिक तंगी, शिक्षा की कमी और सामाजिक जागरूकता के अभाव का फायदा उठाकर बड़ी संख्या में लोगों का धर्मांतरण कराया गया। आरोप है कि ईसाई मिशनरियों ने लोगों को आर्थिक सहायता, सरकारी योजनाओं के लाभ और प्रार्थना से रोगमुक्ति का भरोसा देकर प्रभावित किया। लेकिन जब आश्वासन पूरे नहीं हुए तो ग्रामीणों ने विरोध जताया, जिसके बाद उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित भी किया गया।
हाल ही में जिले के राघवपुरी क्षेत्र में आयोजित एक समारोह में 61 परिवारों की ‘घर वापसी’ कराई गई। इससे पहले भी करीब 1000 लोगों को उनके मूल धर्म में वापस लाया जा चुका है।
धार्मिक परिवर्तन के पीछे गरीबी और सुविधा का अभाव
पीलीभीत के बैल्हा, वमनपुरी, टाटरगंज और आसपास के करीब दर्जनभर गांवों में राय सिख समुदाय की बहुलता है। ये इलाके शारदा नदी के किनारे बसे हुए हैं, जहां बाढ़ और भूमि कटाव के चलते खेती-किसानी प्रभावित रहती है। बुनियादी सुविधाओं की कमी और शिक्षा के निम्न स्तर ने यहां की आबादी को बाहरी प्रभावों के प्रति असुरक्षित बना दिया।
इसी स्थिति का लाभ उठाकर कुछ धार्मिक संगठनों द्वारा कथित तौर पर बीते पाँच वर्षों में करीब 3000 लोगों का धर्मांतरण कराया गया। पीड़ितों का कहना है कि आर्थिक सहायता और चमत्कारिक इलाज के नाम पर उन्हें भ्रमित किया गया।
सिख संगठनों की पहल से शुरू हुई वापसी
बैल्हा गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष जरनैल सिंह और सचिव परमजीत सिंह के प्रयासों से धर्मांतरण के खिलाफ जागरूकता फैलाने का कार्य शुरू हुआ। इसके बाद ऑल इंडिया सिख पंजाबी वेलफेयर काउंसिल और लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने संयुक्त रूप से घर वापसी अभियान चलाया। फरवरी 2025 में शुरू हुए इस अभियान में अब तक करीब 1000 लोगों को उनके मूल धर्म में लौटाया जा चुका है।
सोमवार को राघवपुरी में आयोजित एक कार्यक्रम में 61 और परिवारों ने पुनः अपने धर्म को अपनाया।
थारू जनजाति भी बनी निशाना
संगठनों के अनुसार, धर्मांतरण का यह सिलसिला केवल पीलीभीत तक सीमित नहीं रहा। लखीमपुर खीरी के गौरीफंटा, तिकुनिया, निघासन और चंदन फाटक जैसे इलाकों में थारू जनजाति के लोगों को भी इसी तरीके से प्रभावित किया गया। इनमें से कुछ को ‘पास्टर’ बना दिया गया, जो स्थानीय लोगों के बीच अलग-अलग दिनों में धार्मिक सभाएं आयोजित करते हैं।
लखनऊ में मंगलवार को प्रेस वार्ता में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष हरपाल सिंह जग्गी ने बताया कि पीलीभीत और लखीमपुर जैसे सीमावर्ती जिलों में यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण की जड़ में आर्थिक असमानता, शिक्षा की कमी और सरकारी व्यवस्थाओं की पहुंच न होना है।