दशहरा पर जब एक तरफ पूरे देश में लोग रावण को बुराई का प्रतीक बताकर पुतला जला रहे थे, तब सोनभद्र के आदिवासी परिवार रावण की पूजा में लीन रहे। म्योरपुर ब्लॉक के बभनडीहा गांव में आदिवासी परिवारों ने रावण और महिषासुर की विधि विधान से पूजा की। उन्हें अपना पूर्वज बताते हुए आदिवासी परिवारों ने रावण का पुतला जलाने की परंपरा का भी विरोध किया। कार्यक्रम के लंकेश के खूब जयकारे भी लगे।
दशहरा का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था। इस दिन लोग उत्सव मनाते हैं। धूमधाम से रावण का पुतला जलाते हैं। बभनडीहा के आदिवासी परिवारों की सोच इससे भिन्न है।
रावण पूजन में शामिल जयमंगल ने बताया कि रावण महाज्ञानी और विद्वान थे। वह हमारे पूर्वज थे। हर वर्ष किसी ज्ञानी को जलाया जाना उचित नहीं है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में जिला प्रशासन को ज्ञापन देकर रावण दहन की परंपरा को रोकने की मांग की गई है। सोनभद्र के आदिवासी परिवार भी अब जागरूक हो रहे हैं। बबई सिंह मरकाम, जयमंगल सिंह उरेती, राजेश कुमार श्याम, रामवतार कुशरो, रामखेलावन उरेती, जवाहरलाल मरकाम, विजय सिंह मरावी, प्रांजल सिंह, रामधनी कोरम सहित आसपास के कई गांवों के लोग मौजूद रहे।