पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन: करोड़ों किसानों के दिलों की धड़कन थे चौधरी चरणसिंह

35 वर्ष पहले के वे दुःखपूर्ण क्षण मुझे आज भी याद हैं जब मैं किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के अंतिम दर्शन करने और श्रद्धासुमन अर्पित करने को जिला मुज़फ्फरनगर जनता पार्टी के अध्यक्ष तथा समाजवादी पार्टी के नेता भाई सत्यवीर अग्रवाल एडवोकेट के साथ नई दिल्ली के 12, तुगलक रोड पंहुचा। मैंने देखा कि सूर्य के समान दमकने वाला चेहरा निस्तेज पड़ा था। उसी समय दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम काला चोगा पहने श्रद्धांजलि अर्पित करने आये। अंतिम दर्शन करने वालों का ताँता लगा हुआ था। हम दोनों भारी मन से बाहर आ गए। हमे पूरी दिल्ली उस दिन खामोश और उदास दिखाई दी।

चौधरी साहब देश की महान विभूतियों में से एक थे जिनको कृषक समाज पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद रखेगा। उनका जन्म 23 दिसम्बर, 1902 में ग्राम नूरपुर में साधारण किसान चौधरी मीरसिंह के घर हुआ था। गरीबी और अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में बीएससी, दो विषयों में स्नातकोत्तर परीक्षा एवं एलएलबी पास की। सम्भवतः आज की युवा पीढ़ी के कम लोग ही जानते होंगे कि वे बल्लभगढ़ के राजा नाहर सिंह के वंश से थे जिन्हें सन् 1857 की क्रान्ति में भाग लेने के लिए अंग्रेजों ने चांदनी चौक में फांसी पर लटका दिया था।

गाजियाबाद में वकालत करते-करते अ.भा. कांग्रेस कमेटी की वहां स्थापना की और गांधी जी के आह्वान पर हिंडन नदी के किनारे नमक बना कर कानून तोड़ने पर जेल गये। इसके पश्चात वकालत छोड़ कर पूरी तरह देश की आजादी के आन्दोलन में समर्पित हो गए। जब ब्रिटिश सरकार से कांग्रेस का उत्तरप्रदेश में अन्तरिम सरकार बनाने का समझौता हुआ तो 34 वर्ष की आयु में छपरौली से यूपी लेजिसलेटिव एसेम्बली के सदस्य चुने गए। किसानों के व्यापक हित में सन् 1938 में ‘कृषि उत्पाद व्यापार विधेयक’ पेश किया जिसकी उपयोगिता को देख पंजाब में इस पर कानून बनाया गया। अपनी किसान-मजदूर हितैषी नीतियों और योग्यता तथा जनसेवा को समर्पित भाव के आधार पर चौधरी चरणसिंह संसदीय सचिव से लेकर मुख्यमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री, उप-प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री के शीर्ष पद तक पहुंचे। चौधरी साहब की देशसेवाओं एवं उनके सद्गुणों व उपलब्धियों का इस छोटे से आलेख में वर्णन सम्भव नहीं है। हम तो यही कहेंगे कि नयी पीढ़ी तक उनके महान् कार्यों एवं आदर्शों को पहुंचाना अति आवश्यक है।

चौधरी चरणसिंह मनसा, वाचा, कर्मणा के आदर्श को अपनाने वाले महापुरुष थे। अनुशासन, ईमानदारी और सिंद्धान्तो की प्रतिबद्धता उनके लिए अनिवार्य थी। चौधरी साहब ने यूं तो अनेक सारगर्भित एवं उपयोगी पुस्तकें लिखीं हैं किन्तु जेल प्रवास के दौरान लिखी गई उनकी पुस्तक ‘शिष्टाचार’ नवयुवकों के लिए गीता के समान अध्ययन करने का आदर्श ग्रंथ है। शिष्टाचार तथा लोकाचार जीवन का अनिवार्य अंग है। यह मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि चौधरी साहब के पौत्र जयंत सिंह चौधरी उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का नाम लेकर राजनीति के मैदान में उतरे हैं। कबीर ने कहा था -‘माया महाठगिनि हम जानी।’ आज तो राजनीति महाठगिनि माया बनी हुई है। हमने जैसा देखा, सुना, परखा, चौधरी चरणसिंह ने इस महाठगिनि के आगे कभी माथा नहीं टेका। यदि चाहते तो इंदिरा गाँधी के दबाव में आकर कठपुतली प्रधानमंत्री बने रहते, उनके पिताश्री जवाहरलाल नेहरू की चापलूसी कर सहकारी खेती जैसे विषयों और उनकी साम्यवादी पद्धति की अर्थनीति की हाँ में हाँ मिलाते रहते। चौधरी साहब ने कभी अपने उसूलों के साथ समझौता नहीं किया।

किसान मजदूर, अल्पसंख़्यक, पिछड़ों, आदिवासियों को वे सबसे अधिक तरजीद देते थे। जीवन में कठिन से कठिनतम परिस्थितियों में वे अपने सिद्धान्तों पर चट्टान की भांति डटे रहे। भारत में बिना मांगे सलाह देने की परिपाटी है। राजनीति के मैदान में उतरे जयंत को बिना मांगे सलाह दे रहे हैं क्योंकि हमारे हृदय में चौधरी साहब की जो साफ- सुथरी स्वर्ण जैसी जगमगाती छवि है, उसे बेदाग बने रहना देखना चाहते हैं। चौधरी साहब ने धन-सम्पदा , कोठी-कार, फार्म-हाउस और ऊंचे पदों की लालसा कभी नहीं की। जयंत इस युग के प्रतिभावान युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। कामना है कि वे चौधरी साहब की पवित्र-पुनीत छवि को कायम रखते हुए पल-पल पर रूप बदलती हुई राजनीति के भ्रमजाल में फंसे बिना किसान और चरणसिंह की इज्जत को जीवन भर बढ़ाते चलेंगे। वे किसी से गठबन्दन करें, गठजोड़ करें या “इकला चलो रे” की नीति अपनायें किन्तु उनके केंद्र में चौधरी चरणसिंह होने चाहियें- वो चरणसिंह जिन्होंने कभी कठिन परिस्थितियों में भी शिष्ठता, सदव्यवहार और शालीनता का त्याग नहीं किया। ये भारतीय सभ्यता के शाश्वत मूल्य हैं जिन्हें 21वीं सदी में भी और आगे कभी भी तिलांजलि नहीं दी जा सकती। जिनकी सोहबत में जयंत आजकल हैं, वे कभी कहते हैं – ‘क्या तुम्हारे बाप ने पैसा दिया था’ कभी अपने से बुजुर्ग प्रतिद्वंदियों को जली-कटी सुनाकर कटाक्ष करते हैं। उस विवेक शून्यता का क्षणिक लाभ प्रतीत होता हैं। उनके आदर्श चौधरी चरणसिंह नहीं और कोई हैं। ऐसी वाणी से आप बचने का प्रयास करें, आपके पास जो अनमोल धरोहर है, उसको आंच न आये, इसको लक्ष्य कर राजनीति में कदम बढ़ाना है।

चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर “देहात परिवार” की ओर से शत-शत नमन!

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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