शुकतीर्थ में गंगावतरण का अनुत्तरित प्रश्न !

समाचार है कि भारत के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक- मुजफ्फरनगर जिले के शुकतीर्थ (जो कालान्तर में अपभ्रंश होकर शुक्रताल कहलाता है) स्थित बाणगंगा का जल प्रदूषित हो कर काला हो गया है। प्रदूषण के कारण लाखों की संख्या में मछलियां तथा जलीय जन्तु मर चुके हैं। 11 मार्च 2023 को शुकतीर्थ के सन्तों- गोपाल महाराज, महन्त बाबा कृपादास, सेवादास, अर्जुनदास, राम गिरि एवं सन्त शंकर गिरि आदि सन्तों ने नदी के प्रदूषित जल के बीच खड़े होकर प्रदूषण न रोकने पर विरोध जताया। शुकतीर्थ के नागरिक भी दशकों से होने वाले जलीय प्रदूषण को रोकने के लिये नदी में खड़े हो कर विरोध जता रहे हैं।

निष्काम कर्मयोगी शिक्षा ऋषि स्वामी कल्याणदेव महाराज ने बताया था कि जब शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत सुनाई थी तब गंगा की धारा वर्तमान अक्षयवट के समीप प्रवाहित होती थी। शुकतीर्थ के खोले (रेत के ऊंचे टीले) आज भी इस सच्चाई का बखान कर रहे हैं। समय के साथ गंगा का प्रवाह शुकतीर्थ से हटता चला गया।

नवम्बर 1958 में वीतराग स्वामी कल्याणदेव जी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को शुकतीर्थ लाये थे। उनकी जनसभा में मैं पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा के साथ मौजूद था। महाराजश्री ने नेहरू जी से आग्रह किया था कि वे गंगा की धारा को शुकतीर्थ लायें और आधुनिक भगीरथ बनने का सौभाग्य प्राप्त करें। तब से आज तक यह मांग या स्वामी जी का सपना पूर्ण नहीं हो पाया।

सन् 1958 में जब नेहरु जी शुकतीर्थ आये थे तब यहां बहने वाली सोनाली व बाण गंगा नदियों का पानी प्रदूषित नहीं था और गंगा की धारा भी इतनी दूर न थी जितनी अब है। तब से अनेक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सिंचाई मंत्री शुकतीर्थ पधारे किन्तु शुकतीर्थ में बहने वाली नदियों को प्रद्वषण मुक्त नहीं किया जा सका, गंगा को पुनः शुकतीर्थ से प्रवाहित करने का भगीरथ प्रयास किसी सरकार ने नहीं किया, यद्यपि वायदे बहुत किये गए।

शुकतीर्थ की तात्कालिक समस्या बाणगंगा व सोलानी को प्रदूषण मुक्ति करने की है। मुजफ्फरनगर के क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी अंकित सिंह ने बताया कि बागगंगा में प्रदूषण के कारण एक लिटर पानी में आक्सीजन की मात्रा सिर्फ 0.8 मिली ग्राम रह गई है जबकि न्यूनतम मात्रा 4 मि.ग्रा. अवश्य होनी चाहिए। जलीय जन्तुओं के मरने का यही मुख्य कारण है।

सरकार, प्रदूषण विभाग, नदी व जल संसाधन मंत्रालय, नमामि गंगे और मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, नेताओं सभी को पता है कि रुड़की के पास इदरीसपुर नाले के जरिये फैक्ट्रियों का जहरीला पानी नदियों तक पहुंचता है। दस बीस बार नहीं वरन् सैकड़ों बार यह समस्या उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकारों के सामने उठाई जा चुकी है किन्तु आज तक पक्का समाधान नहीं निकल पाया। कारण यह है कि सिस्टम भ्रष्ट व निकम्मा और नेता वोट बैंक के भिखारी बन चुके है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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