भारत में शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो सरदार पटेल के विषय में न जानता हो। आज 31 अक्तूबर को सरदार पटेल की जयन्ती पूरा देश मना रहा है। अत्यधिक दुःख है कि भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष को, जिसे ‘आयरनमैन’ के रूप में इतिहास में स्थान मिला है, के बारे में अति अभद्र एवं सर्वथा झूठी बातें कही गई हैं। सबसे अधिक आपत्तिजनक और अफसोसनाक बात यह है कि सरदार के प्रति ये बेहूदगी भरी बातें सोनिया गांधी व राहुल की मौजूदगी में कही गईं।
16 अक्तूबर को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में दरबारी कांग्रेस नेताओं ने सोनिया व राहुल की खुशनूमी हासिल करने के लिए तरह-तरह की बातें कीं। कश्मीर कांग्रेस के नेता तारिक हमीद करा ने तो नेहरू-गांधी परिवार की चापलूसी करते हुए सरदार पटेल संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों को भी भुला दिया। चापलूसी तक तो बात ठीक रहती लेकिन तारिक हमीद ने सरदार पटेल के राजनीतिक चरित्र पर ओछा प्रहार करते हुए कहा कि पटेल ने जिन्ना से सांठगांठ करके कश्मीर पाकिस्तान को सौंपे जाने का फैसला कर लिया था, यदि पंडित जवाहर लाल समय रहते चेत न गए होते तो पटेल ने तो कश्मीर पाकिस्तान को सौंप ही दिया था। तारिक हमीद के इस झूठ को सोनिया व राहुल चुपचाप सुनते रहे, उन्होंने एक बार भी सरदार पटेल के विषय में अनर्गल प्रलाप कर रहे तारिक हमीद को नहीं रोका।
सारा संसार जानता है कि लार्ड माउंटबेटन के चक्कर में आकर नेहरू ने कश्मीर पर हुए 1948 के हमले पर ढुलमुल रवैया अपनाया। जनरल थिमैया को सरदार पटेल ने पाकिस्तान के हमले को रोकने का आदेश दिया। भारतीय सेना ने पराक्रम दिखा कर कथित कबाइलियों (जो वास्तव में पाकिस्तानी सैनिक ही थे) को श्रीनगर से खदेड़ना शुरू किया। जब भारतीय सेना पाकिस्तानियों को पीछे धकेलने में जुटी थी तब गवर्नर जनरल माउंटबेटन की सलाह मानते हुए जवाहर लाल नेहरू ने युद्धविराम की एकतरफा घोषणा कर दी और मामला राष्ट्रसंघ में ले गए। कश्मीर को विशेष दर्जा देने और पाक अधिकृत कश्मीर रूपी नासूर पैदा करने का काम पंडित नेहरू का ही था। सरदार पटेल न होते तो पूरे कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया होता।
सरदार पटेल ने न केवल कश्मीर को बचाया था बल्कि हैदराबाद के निजाम की चाल को विफल करने को पुलिस एक्शन भी किया और जूनागढ़ के नवाब को पाकिस्तान भागने पर विवश भी किया। सरदार ने किस प्रकार 562 देसी रियासतों का भारत में विलय कराके भारत को खंड-खंड करने के अंग्रेजों के षडयंत्र को विफल किया यह पूरा देश जानता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अ.भा. कांग्रेस कमैटी सरदार पटेल को भारत का पहला प्रधानमंत्री निर्वाचित करना चाहती थी किन्तु गांधी व माउंटबेटन की जिद के कारण सरदार पीछे हट गये और उन्होंने नेहरू का प्रधानमंत्री बनना स्वीकार कर लिया। सारा जीवन किराये के मकान में गुजारा। देह त्यागी तो बैंक एकाउंट में महज़ 260 रुपये मिले। उनकी मृत्यु के बाद कांग्रेस कोष के 40 हजार रुपये सरदार की पुत्री मनीबेन पंडित नेहरू को सौंप आईं।
अफसोस है कि गलत-बयानी करके सरदार पटेल जैसे महान् नेता पर कीचड़ उछालने वाले तारिक हमीद के कथन पर कांग्रेस हाईकमान अब तक चुप्पी साधे बैठी है और चापलूसों को ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करने की इज़ाजत दे रही है। भारत की जनता सरदार पटेल की महानता व देश के प्रति उनके योगदान को सदा याद रखेगी। महान् जननायक को जयंती पर हमारा श्रद्धापूर्वक नमन।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात