हमारे भी हैं ये ‘माननीय’ कैसे-कैसे !

एक वर्तमान राज्यपाल (मेघालय) सतपाल मलिक हैं, दूसरे पूर्व राज्यपाल (उत्तराखंड) अजीज़ क़ुरैशी। इन दोनों महानुभावों के ‘सद्वचन’ आज चर्चाओं में हैं। उम्मीद थी कि सतपाल जी गवर्नरी छोड़ कर 5 सितंबर की महापंचायत में जरूर शरीक होंगे किंतु पता नहीं क्यूं वे पंचायत से गैरहाजिर रहे? वैसे उन्होंने मेघालय से ही संदेश भेज दिया है कि करनाल में एस.डी.एम क्या डी.एम और सी.एम के सिर फोड़े जा सकते हैं। मनोहर लाल खट्टर के ‘बक्कल तारने’ का फरमान तो शिलांग से जारी हो ही चुका है। गवर्नर साहब ने अभी तक ‘पूंछ पाड़ कै लांडा कर कै गुजरात भेजो’ का फ़तवा जारी नहीं किया है। जनता पार्टी, कांग्रेस, जनमोर्चा, सपा, भाजपा के फेरे मारने के बाद शायद उनका इरादा जहां से चले थे, वहीं पहुंचने का हो।

कांग्रेस राज में गवर्नरी कैसे मिलती थी, इसका एक नमूना हैं अजीज़ क़ुरैशी। जनाब के पैर कब्र में लटक रहे हैं लेकिन बदअखलाकी बदज़ुबानी से बाज़ नहीं आते। रामपुर के मुस्लिम नौजवानों को निज़ाम हाथ में लेकर ‘यूपी’ के खूनी दरिन्दे योगी के कथित जुल्मों की तुलना महमूद ग़ज़नवी से कर रहे हैं।

यह दोनों तथाकथित माननीय अराजकता फैलाने और कानून हाथ में लेकर भीड़तंत्र की मानसिकता फैलाने का कुचक्र रच रहे हैं। यहां तो जनादेश की अवहेलना और जम्हूरियत की कब्र खोलने वाले रंगे सियार पहले ही हू-हू करने में जुटे हैं जो इनकी कमी रह गई थी।

और एक हैं कथित बड़े शायर, फिल्मी डायलॉग लिखने वाले जावेद अख़्तर। इनकी बीवी ने अफ़वाह उड़ाई थी कि मुस्लिम होने की वजह से उन्हें मुंबई में रहने को मकान नहीं मिल रहा हैं। अब मियां ने डायलॉग दे मारा कि इंडिया में भी तालिबान मौजूद है जो औरतों की हैं हक्तल्फी करता है। जबरन पर्दादारी कराता है। उन पर कोड़े बरसाता है। संगसारी कर के चौराहों पर मारता है। चोरों के हाथ कांटता है। सरेबाजार सिर कलम करता है। उनके कथनानुसार आरएसएस भी वैसे ही जुल्म ढाता है, जैसे तालिबानी ढाते हैं। नि:संदेह भारत एक महान् देश है जो गद्दारों को पालता-पोस्ता है और सिर पर बिठाता है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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