क्या कहते हैं चुनावी नतीजे !

गुजरात विधानसभा चुनावों में 182 सीटों में से 156 सीटें जीत कर नरेन्द्र मोदी की सुनामी ने भारतीय जनता पार्टी का नया इतिहास रच दिया। दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा अपने गृह राज्य में पार्टी की दुबारा ताजपोशी नहीं करा पाये।

गुजरात में परिवर्तन-परिवर्तन का राग अलापने और मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का जोर-शोर से ऐलान करने वाले अरविन्द केजरीवाल को मात्र 5 सीटें हासिल हुईं। हिमाचल में केजरीवाल खाता भी नहीं खोल पाये।

हिमाचल प्रदेश में पांच वर्ष बाद सत्ता परिवर्तन का रिवाज दोहराया गया जहाँ कांग्रेस ने 39 सीटें हासिल कीं। 13 सीटों को 100 से 1000 वोटों के बीच के अन्तर से हार कर भी भाजपा ने 26 सीटें हासिल कीं और मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी।

मैनपुरी संसदीय सीट पर मतदाताओं ने डिम्पल यादव को 2 लाख 38 हजार वोटों की प्रचण्ड जीत दिला कर मुलायम सिंह यादव की लोकप्रियता और यादव परिवार को आस्था के प्रति सम्मान प्रकट किया।

खतौली उप चुनाव में गुर्जर-जाट-मुस्लिम समीकरण ने गठबंधन प्रत्याशी मदन भैया के सर पर जीत का सेहरा बांध दिया, दूसरी ओर रामपुर में सपा के मुस्लिम चेहरा बने आजम खान के चुनावी तिलस्म को भाजपा के आकाश सक्सेना ने 34 हजार वोटों से जीत कर तोड़ डाला।

दिल्ली नगर निगम चुनावों में 250 सीटों में 136 सीटें कब्जाने वाली आम आदमी पार्टी कूड़े के पहाड़ों, नालियों की गन्दगी और सड़कों के गड्डों से त्रस्त दिल्ली वासियों की नाराजगी की बिना पर सत्ता में आई किन्तु एम.सी.डी. में 104 सीटें जीतकर भाजपा प्रबल विपक्ष के रूप में उभरी। ये नतीजे संकेत देते हैं कि चुनावों में सिर्फ विकास का मुद्दा ही नहीं चलता, जातीय गठबंधन, पारिवारिक गुडविल और स्थानीय मुद्दों का भी महत्व होता है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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