कहां सो रहे हैं मानव अधिकारों के रक्षक!

तालिबान के साथ हुए महादे के मुताबिक अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना बुला चुका है। अफगानिस्तान को कट्टर इस्लामी देश बनाने के अपने इरादों को पूरा करने में जुटे तालिबानी जो कुछ कर रहे हैं, उसे पूरी दुनिया देख रही है क्यूंकि वे कुछ भी चोरी-छिपे नहीं कर रहे हैं।

तालिबान अफगानिस्तान में जो कुछ कर रहा है, उसके तफसील में जाने की जरूरत नहीं। हां, यह ज़रूर कहा जाएगा कि तालिबानी सत्ता कब्जाने के बाद जो करतूतें कर रहे हैं उनका इंसानियत और इंसाफ से दूर का भी वास्ता नहीं है।

संसार की महाशक्तियां अपने-अपने स्वार्थों के कारण ये सब जुल्म-ज्यादतियां चुपचाप देख रही हैं। इनमे चीन और रूस भी शामिल है। चीन ने तो तालिबान का खुला समर्थन कर दिया है क्यूंकि तालिबानी तीर के ज़रिये वह एक साथ कई शिकार करना चाहता है। संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद एक बार फिर कागजी शेर सिद्ध हुआ है।

अलबत्ता कुछ देश जो अफगानिस्तान के इर्दगिर्द बसे हैं तालिबान की नीति-रीती व उसकी मज़हबी कट्टरता से अंदर ही अंदर प्रभावित हो रहे हैं क्यूंकि नया तालिबान खच्चर व घोड़ों पर चप्पल पहन कर चलने वाला तालिबान नही हैं।

छोटी-मोटी घटनाओं पर भारत की बखिया उधेड़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन जैसे इदारे व मानवतावादी, लोकतंत्रवादी, मीडिया व एक्टिविस्ट, सब कहां गुम हो गए? अफगानिस्तान की जनता को मध्ययुगीन कट्टरता का खुले आम शिकार बनाया जा रहा है और सेक्यूलरवाद के झंडाबरदारों को लकवा मार गया है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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