कहां गए लोकतंत्रवादी?

पंजाब के अबोहर से विधायक चुने गए अरुण नारंग को कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने पहले उनका मुंह काला किया, फिर कपड़े फाड़ दिये तथा उन्हें पीटा। इस शानदार कारगुज़ारी की जिम्मेदारी से भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इंकार किया है। उनका कहना है कि किसानों ने तो भाजपा विधायक को सिर्फ काले झंडे दिखाये हैं। बाद का काम यानी मुंह काला करना, कपड़े फाड़ना और पीटना, यह सब भारतीय जनता पार्टी ने किया है क्योंकि मोदी काले कानून वापिस लेना नहीं चाहते अतः ऐसी हरकतें कर वे किसानों को बदनाम करना चाहते हैं।

भाजपा विधायक अरुण नारंग के साथ हुई अभद्रता का सच पूरे देश के सामने आ चुका है। राकेश टिकैत इस संबंध में क्या कहते हैं, इससे भी बड़ा सवाल है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नकली हिमायती, सेक्युलरवादी, डिजाइनर पत्रकार और ककथित लोकतंत्रवादी, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों की जुबान पर क्यूं ताले पड़े हैं। वे क्यूं नहीं कहते कि कालिख पोतना, प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपद्रव कर मारना-पीटना, कृषि कानून का समर्थन करने वालों का सही इलाज है।

राकेश टिकैत ने साफ-साफ कह दिया है कि यह सारा कांड खुद भाजपा ने कराया है ताकि किसान बदनाम हो सके। काले कानून का विरोध करने वाले लोकतंत्रवादी बुद्धिजीवियों को भी ऐसा ही साहस दिखाना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते तो किसान मोर्चा के साथ गद्दारी करते हैं।

ढाका के दंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान हिंदूबस्ती ब्राह्मणबरिया में कट्टरपंथी मुस्लिम आतंकी संगठन हिफाजत-ए-इस्‍लाम व पश्चिम बंगाल व आवाम के लीगी कठमुल्ला बदरुद्दीन अजमल के तार आपस में जुड़े हैं। कठमुल्ला न तो भारत के भीतर, न ही बंगलादेश में शांति व सद्भाव चाहते हैं। इनकी राजनीतिक दुकानें खूनखराबे व मारकाट तथा आगजनी पर ही आधारित है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमलों का लाभ कांग्रेस व अजमल की पार्टी को मिल सकता है। यह भी निश्चित है कि बगबंधु की शहादत के 50 वर्ष बाद भी बांग्लादेश में कट्टरपंथी जिहादी तत्व कमज़ोर नहीं हुए हैं और वे मौका मिलते ही मजहबी तास्सुब की आग सुलगाने को तत्पर रहते हैं। भारत को इस पर सतत निगाह रखनी होगी।

गोविंद वर्मा (संपादक ‘देहात’)

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