जो कबिरा काशी मरे !

भारत के ही नहीं, विश्व के महान तत्व ज्ञानी, चिंतक, और कवि, दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तथा सही अर्थो में सेक्युलर संत, कबीर के निर्वाण स्थल मगहर (वाराणसी) में 5 जून, 2022 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 47 करोड़ रुपये की लागत से तैयार कबीर अकादमी तथा अनुसन्धान केंद्र व अन्य निर्माणों का लोकार्पण किया।

प्रारंभिक कक्षाओं में हिंदी विषय में अंक प्राप्त करने के उद्देश्य से कबीर की साखिया, शब्द पढ़े और उनके अर्थ रट कर याद किये। भक्ति-काल के अन्य कवियों के दोहे, सवैया, पद, सोरठे भी पढ़े और याद किये किन्तु कमाल है कि कबीर की दो पंक्तियों की रचना में इतनी बुद्धिगम्य थीं कि आज 80 वर्ष की आयु में भी याद है, जबकि बहुत कुछ पढ़ा लिखा बिसर चुका है।

हमारे पिता श्री राजरूप सिंह वर्मा के परम मित्र थे बाबू कन्हैया लाल इंजीनियर। उनकी तैनाती अधिकतर पूर्वांचल में ही रही। संतवृत्ति के प्राणी थे। उन्होंने मुझे बताया कि आजमगढ़ में तैनाती के समय वे जब वाराणसी बाबा काशी विश्वनाथ के दर्शन करने गए थे तो मगहर में संत कबीर की समाधि के दर्शन करने मगहर भी गए थे। इंजीनियर साहब ने बताया कि मगहर में कबीर की समाधि भी है और मकबरा भी है। उन्होंने बताया कि निर्गुण राम के उपासक कबीर जीवन के अंतिम दिनों में काशी छोड़ आये थे। उस समय मान्यता थीं कि काशी में शरीर त्यागने से मोक्ष मिलता है और मगहर में मरने से नर्क। कबीर ने कहा- काशी में मरने से मोक्ष मिलता है तो इसमें राम (ईश्वर) का क्या अहसान! उसकी कृपा तो तब जानी जाएगी जब मैं मगहर में प्राण त्यागूँ और मुझे मोक्ष मिल जाये।

इंजीनियर साहब ने मुझे बताया कि कबीर की समाधि और मजार में एक बड़ा अंतर यह देखा कि समाधि में फूल पडे थे किन्तु साफ-सफाई नहीं थीं। समाधि पर बैठे लोग आग्रह करने लगे कि कुछ दान करके जाइये। मजार में पहुंचे तो वातावरण अगरबत्तियों कि सुगंध से महक रहा था। खूब स्वच्छता थी। प्रबंधक ने एक पैसा भी चढ़ाने का आग्रह नहीं किया।

बाबू कन्हैया जी साधु संतो की बहुत कद्र करते थे और महान संतो के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा थी। एक जनश्रुति सुनाई जिसमें बताया गया था कि भगवान ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिए और कहा कि कुछ मांग लो। कबीर इंकार करते रहे। बार- बार के आग्रह के बाद बोले- देना है तो गरीबी दे दो। ईश्वर ने कहा- दुनिया की एक तिहाई गरीबी तो तुम्हारे पल्ले पड़ी है, फिर भी गरीबी ही मांगी। इंजीनियर साहब ने कहा कि इसका तात्पर्य यह है कि कबीर ईश्वर के साक्षात्कार के बाद माया के छलावे से दूर रहने वाले विरक्त संत थे। उन्होंने संत कबीर के विषय में और भी अनेक कहानियां सुनाई।

काशी से मगहर प्रस्थान के समय कबीर ने कहा था- जो कबिरा काशी मरे तो रामहि कवन निहोरा काशी में मुक्ति (जीवन- मरण के चक्र से छुटकारा) मिली तो राम का क्या अहसान।

जन्म मरण, आवा-गमन, मोक्ष इसे हम जैसे सामान्य जीव क्या समझ सकते हैं किन्तु निरक्षर कबीर ने इसे समझ लिया था। क्या चमत्कार हैं कि जिसने कभी कागज-कलम को हाथ नहीं लगाया उस पर सैकड़ो विद्वानों ने पीएचडी की और विश्व के कोने-कोने में हर भाषा में उन्हें पढ़ा-समझा जाता हैं। मगहर में कबीर अकादमी व रिसर्च सेंटर खुलना उनका सच्चा सम्मान हैं। कबीर की पथ निरपेक्षता और मानवता की सेवा का सन्देश सृष्टि पर्यन्त अमर रहेगा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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