क्यों सुलगा कानपुर ?

कल हमने कानपुर में जुमे की नमाज़ के बाद एक सम्प्रदाय विशेष द्वारा दुकानों को जबरिया बंद कराने, पथराव, बम फेंकने तथा वाहनों में तोड़फोड़ की घटनाओं का संक्षेप में जिक्र किया था।

भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता नूपुर शर्मा की टीवी डिबेट को इस बवाल का आधार बनाया गया। मुस्लिम नेताओं तथा धर्म गुरुओं ने आरोप लगाया कि नूपुर शर्मा ने हमारे नबी की शान में गुस्ताख़ी की है, हम इसे सहन नहीं करेंगे। परेड, नई सड़क व यतीमखाना रोड की मस्जिदों में जुमे की नमाज़ के बाद लगभग 3000 लोग चंद्रेश्वर हाते की ओर आये। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के कानपुर आगमन सम्बन्धी स्वागत में जो बैनर लगे थे उन्हें और भाजपा के झंडों को तोड़ना फाड़ना शुरू कर दिया। ये लोग मुँह पर नकाब लगाए हुए थे। एक ठेले पर पत्थर तथा ईंटो के टुकड़े लाये थे। पेट्रोल की बोतलें व सरिया तथा तमंचे उनके हाथों में थे। सबसे पहले वहां लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ा फिर हाते में जो मिला उस पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया।

हमला करने वालों ने कहा कि जब हमने कानपुर बंद का आह्वान किया था तो तुमने दुकानें खुली क्यों रखी? दुकानदारों पर आक्रमण करने के साथ ही दुकानों में तोड़फोड़, लूट की और अनेक वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया। मौके पर पहुंची पुलिस को दौड़ा लिया। छतों पर से भी पथराव किया गया। दंगाइयों के हमले में कुछ पुलिसकर्मी तथा 30 लोग घायल हो गए।

जैसा कि सेक्युलरवादी हमेशा से करते आये हैं, अभी तक सिर्फ अखिलेश यादव ने ही भाजपा पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा कर नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग की है। नूपुर शर्मा ने कहा है कि डिबेट का वीडियो मौजूद है, मैंने जो कुछ कहा है वे सभी तथ्य इस्लामिक पुस्तकों में मौजूद हैं।

जैसा कि होता आया है सेक्युलरवादी, वामपंथी, कांग्रेस, सपा- बसपा और शायद शिवसेना भी इस बवाल के लिए भाजपा को दोषी बताएंगे। यह भी मुमकिन है कि ओवैसी और उन जैसे दूसरे नेता मांग करेंगे कि भारत में भी पाकिस्तान की तरह ईशनिंदा का कानून बनाया जाये ताकि नूपुर को फांसी पर लटकाया जा सके।

बिना पुष्टि किये मौलानाओं ने नूपुर शर्मा को मुज़रिम घोषित कर दिया और उसकी सजा देने को ठेले में ईंट-पत्थर भरकर, मुँह पर नकाब लगा के हाथों में तमंचे व बम लेकर दुकानों, दुकानदारों, वाहनों पर धावा बोल दिया गया।

हमले का तोर-तरीका ठीक वैसा ही था जैसा अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आगमन के समय दिल्ली के दंगों का था। फिर यह खेल कई राज्यों में नवरात्र व हनुमान जयंती के जलूस पर योजनाबद्ध तरीको से हमलों के जरिये किया गया। पिछले वर्ष बंगलुरु में भी एक कांग्रेसी नेता के आह्वान पर कई घंटे हिंसा का तांडव हुआ था। पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों के मौके पर हिजाब के बहाने माहौल ख़राब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी। कानपुर में भी दंगा भड़काने की कोशिश तब हुई जब तमाम पुलिस प्रशासन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों की व्यवस्था में जुटा था।

हमारा केंद्र सरकार से आग्रह है कि देश में योजनाबद्ध तरीके से कराई जा रही हिंसा व अराजकता की सभी घटनाओं को सूचीबद्ध कर उसकी बारीकी से जाँच कराये और आस्तीन के उन सांपो को ढूंढ निकाले जो देश की शांति एवं विकास की गति को डसना चाहते हैं। उन सभी लोगों, राजनीतिक दलों व संस्थाओं की गतिविधियों और भाषणों, वक्तव्यों को जाँच के दायरे में लिया जाये जो निरंतर देश की शांति व्यवस्था को बिगाड़ने में जुटे हैं। यह भी तलाशा जाये कि कही भारत विरोधी देशों के इशारे पर तो यह माहौल नहीं बनाया जा रहा है। लोकतंत्र और संविधान लोक कल्याण के लिए हैं। जो इनकी आड़ लेकर देश के हितों को चोट पहुंचा रहे हैं, उन्हें हरगिज़ भी बख्शा नहीं जाना चाहिए।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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