क्यों दुम दबा गए पत्रकार ?

23 मार्च 2023 को अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का झूठा प्रचार करने वाले एजेंडावादी पत्रकारों एवं मीडिया हाउसों ने पत्रकार उत्पीड़न की एक खबर को शरारतपूर्ण तरीके से दबा दिया। 23 मार्च को बिहार के अनेक स्थानों पर पत्रकार मनीष कश्यप की साजिशन गिरफ्तारी व दमन-उत्पीडन के विरुद्ध प्रदर्शन किया गया। किसी भी पत्रकार, समाचार पत्र, टी.वी. चैनल ने बिहार के युवा पत्रकार के उत्पीड़न का विरोध तो किया ही नहीं, उसे जेल में डाल कर प्रताड़ित करने पर विरोध का साहस नहीं किया।

बिहार में यादव-मुस्लिम गठबंधन की राजनीति करने वाले लालू परिवार के शासन का मनीष विरोध करता है। बिहार के पिछ‍ड़ेपन, गुंडाराज के विरुद ख़बरें डालता है। उसने हाल ही में कहा था कि दर्जा 9 फेल एक शख्स बिहारियों को मूर्ख बना रहा है। इसे 6 मास में वह सत्ता से उतार देगा क्योंकि बिहारियों के हित में यह जरूरी है। मनीष कश्यप ने तमिलनाडु में बिहार के मजदूरों के साथ मारपीट के कुछ वीडियो अपने यूट्यूब चैनल पर डाले थे। तेजस्वी यादव ने तमिलनाडु की घटनाओं के वीडियो व खबरों को गलत बताकर उस पर देशद्रोह व समाज में अशांति व वैमनस्य भड़काने के 14 मुकदमे दर्ज करा दिए। यहीं नहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से कह कर 13 मुकदमे तमिलनाडु में दायर करा दिये। नीतीश सरकार ने मनीष के बैंक एकाउंट सीज कराने के साथ ही घर का सब सामान, यहां तक कि खाट-खटौले तक थाने में जमा करवा दिए।

पत्रकार मनीष कश्यप के उत्पीड़न और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोटने वाले वे ही लोग हैं जिन्होंने पत्रकार अर्नब गोस्वामी को जेल में ठुस दिया था। जिन्होंने रोशनी एक्ट की आड़ में अरबों रुपये की जमीन एक सम्प्रदाय विशेष को मुफ्त में बांटने की करतूत का भंडाफोड़ करने वाले पत्रकार सुधीर चौधरी पर 200 फर्जी एफ.आई.आर दर्ज कराई थीं। लेकिन प्रेस की आजादी का झंडा उठाने वाले लुटियन मीडिया को मनीष कश्यप के उत्पीड़न पर सांप क्यूं सूंघ गया?

19 मार्च 2023 को एन.आई.ए. ने कश्मीर लोकेशन ऑफ सिविल सोसाइटी नामक एनजीओ की आड़ में अलगाववादी आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पत्रकार इरफान मेहराज को गिरफ्तार किया तो प्रेस क्लब आफ इंडिया ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बता दिया और इरफान को फौरन रिहा करने की मांग की। पूरा लुटियन मीडिया इरफान के समर्थन में उठ खड़ा हुआ। प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन पीएफआई के समाचार पत्र तेजस डेली का पत्रकार सिद्दीक कप्पन 7 ऑक्टूबर 2020 को मथुरा टोल प्लाजा पर गिरफ्तार किया गया था। 2015 के दिल्ली दंगों में सिद्दीक की संलिप्तता पाई गई थी। हवाला से आतंकी फंडिंग में एक करोड़ 38 लाख रूपये प्राप्त करने के मामले में आरोपी था। उसकी गिरफ्तारी पर महबूबा मुफ्ती से लेकर ममता बनर्जी और लुटियन मीडिया तक को मिर्गी का दौरा पड़ गया था- प्रेस की आजादी खतरे में नज़र आने लगी थी। हिन्दुस्तान की परम्पराओं पर सदा हमलावर और कोरोना पीड़ितो की सहायता के नाम पर करोड़ों रुपये डकार जाने वाली एजेंडा पत्रकार राणा अय्यूब की गिरफ्तारी पर प्रेस की आजादी के नकली समर्थकों ने खूब हल्ला मचाया था।

मनीष कश्यप के उत्पीड़न पर ये प्रेस की आजादी के सिपाहियों की लेखनी कुंठित क्यूं हो गई। क्या वे अंधे-बहरे हो गए हैं? इन्हें छोड़िये, इन से किसी सही काम की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

जिस न्यायपालिका को जेब में रखने का आरोप लगाया जाता है, उसे तो कुछ करना चाहिये था। 22 मार्च को मुख्य न्यायधीश डी.वाई चंद्रचूड़ ने रामनाथ गोयंका पुरस्कार समारोह में प्रेस की स्वतंत्रता पर लच्छेदार भाषण दिया। न्यायपालिका जरा-जरा सी बातों पर स्वतः संज्ञान ले लेती है। क्या मनीष कश्यप के प्रकरण में ऐसा नहीं होना चाहिए था।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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