सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक व्यक्ति को उसकी अलग हो चुकी पत्नी और नाबालिग बेटियों को घर से बाहर निकालने के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि इस तरह के व्यवहार ने इंसान और जानवर के बीच बुनियादी अंतर को खत्म कर दिया है। मामले में जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने पूछा, ‘आप किस तरह के आदमी हैं, अगर आप अपनी नाबालिग बेटियों की भी परवाह नहीं करते? नाबालिग बेटियों ने इस दुनिया में आकर क्या गलत किया है?’
‘ऐसे क्रूर आदमी को इस अदालत में घुसने की अनुमति बिल्कुल नहीं’
पीठ ने कहा, आपकी सिर्फ कई बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी रही। हम ऐसे क्रूर आदमी को इस अदालत में घुसने की अनुमति बिल्कुल नहीं दे सकते। सारा दिन घर पर कभी सरस्वती पूजा और कभी लक्ष्मी पूजा और फिर ये सब। पीठ ने कहा कि इस व्यक्ति को तब तक अदालत में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी जब तक वह अपनी बेटियों और पत्नी को भरण-पोषण भत्ता या कुछ कृषि भूमि नहीं दे देता है।
ट्रायल कोर्ट ने पत्नी को प्रताड़ित करने का ठहराया था दोषी
ट्रायल कोर्ट ने झारखंड के इस व्यक्ति को दहेज के लिए अपनी अलग रह रही पत्नी को प्रताड़ित करने और परेशान करने का दोषी ठहराया। उस पर धोखे से पत्नी का गर्भाशय निकलवाने और बाद में दूसरी महिला से शादी करने का भी आरोप है। शीर्ष अदालत ने व्यक्ति के वकील से कहा कि वह अदालत को बताए कि वह अपनी नाबालिग बेटियों और अलग रह रही पत्नी के भविष्य के भरण-पोषण के लिए कितना गुजारा भत्ता देने को तैयार है। इस मामले में अगली सुनवाई 14 फरवरी को होगी।
क्या है पूरा मामला?
ट्रायल कोर्ट ने 2015 में उसे आईपीसी की धारा 498 ए (विवाहित महिलाओं के साथ क्रूरता करना) के तहत दोषी ठहराया और 5,000 रुपये के जुर्माने के अलावा 2.5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। मामला 2009 में दर्ज किया गया था और उसने 11 महीने हिरासत में बिताए। 24 सितंबर, 2024 को झारखंड हाईकोर्ट ने सजा को घटाकर 1.5 साल कर दिया और जुर्माना बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया। दंपति ने 2003 में शादी की और अलग हुई पत्नी लगभग चार महीने तक ससुराल में रही, जिसके बाद 50,000 रुपये के दहेज की मांग को लेकर उसे प्रताड़ित किया गया।