पहले इन महानुभावों के नाम पढ़िए- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी, जस्टिस वी. गोपाल गोड़ा, जस्टिस ए.के. गांगुली, दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस व भारतीय विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस ए.पी. शाह, मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मोहम्मद अनवर, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता शांतिभूषण, इनके लख्तेजिगर प्रशांत भूषण, अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, अधिवक्ता चन्दर उदय सिंह, अधिवक्ता श्रीराम पंचू, अधिवक्ता आनंद ग्रोवर।
इन सबको इलहाम हुआ कि हजरत मौहम्मद साहब की शान में गुस्ताखी का विरोध करने वालों ने जुमे की नमाज़ के बाद देश के विभिन्न शहरों में ईंट, पत्थर, बम बरसाने के बजाय फूल बरसाए हैं और वाहनों, दुकानों, सार्वजनिक सम्पत्तियाँ फूंकने के बजाय फुलझड़ियाँ छोड़ी तथा पुलिसजनों का सिर फोड़ने के बजाय उनके गलो में फूलमालाएं डाल कर विरोध जताया तो ऐसे निर्दोष तथा शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध योगी आदित्यनाथ डंडा क्यों उठा रहे हैं? इस लिए न्याय के शीर्ष सिंघासन पर कभी विराजमान रहे इन महापुरुषों ने भारत के प्रधान न्यायधीश एन. वी. रमण को पत्र लिख कर गुहार लगाई है कि वे इन शांतिदूतो के मानव-अधिकारों की रक्षा हेतु स्वतः संज्ञान लेकर उन्हें बाबा के डंडे से बचाएं।
हम नहीं कहते कि जुमे के नमाज़ी ईंट, पत्थर, बम, गोलियां बरसाने वाले या आगजनी करने वाले थे या फूल बरसाने वाले मासूम लौंडे थे। देश सब जानता है। प्रश्न तो यह है कि कभी न्याय के ऊंचे ओहदों पर बैठे इन लोगो ने अपनी संकुचित मानसिकता और दुराग्रहों के चलते कितने लोगों के साथ नाइंसाफी की होगी और न्याय का गला घोटा होगा? आखिर ये रिटायर होने के बाद भी दंगाइयों का एजेंडा क्यों चला रहे हैं? क्या ये इनके दलाल हैं?
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’