नीति आयोग भवन के भीतर किसान !

16 जून की फेसबुक की एक पोस्ट पर अद्भुत नजारा देखा। दिल्ली स्थित नीति भवन के फ्रंट में पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन अशोक बालियान और भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक खड़े हैं। फिर दूसरा चित्र देखा दोनों कृषक प्रतिनिधि एवं अन्य किसान नेता नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेशचंद्र एवं वरिष्ठ सलाहकार राका सक्सेना के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। श्री बालियान तथा श्री मलिक ने वैश्विक कृषि बाजार, कृषिजन्य पदार्थों के आयात-निर्यात, टैरिफ समायोजन, एमएसपी जैसे राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर गहन चर्चा की।

हमें यह भी स्मरण हो आया कि तीन कृषि कानूनों को काला कानून बताने वाले लोगों से तत्कालीन केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बार-बार किसानों के नेताओं से वार्ता की और कैसे उन्हें अपमानित, तिरस्कृत किया गया। बलघ (बैल) की पूंछ काट कर गुजरात भेजने की बात कही गई।

कृषि प्रधान देश में किसानों की सर्वोच्चता को स्वीकारना और उनकी समस्याओं को प्राथमिकता से हल करना प्रत्येक सरकार का कर्तव्य है, कोई अहसान नहीं। लेकिन पहले क्या होता था और किसान के प्रति सत्ताधारियों की क्या सोच थी? एक घटना याद‌ आती है। स्व. लक्ष्मण सिंह (उ.प्र शासन में राज्यमंत्री) कार्यालय ‘देहात’ में आये, पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संपादक ‘देहात’) से मिले। बहुत उद्विग्न तथा परेशान थे। पिताश्री ने पूछा तो बोले कि किसानों के प्रतिनिधिमंडल को लेकर देसाई साहब (मोरारजी देसाई, प्रधानमंत्री) से मिला था। साथ गये किसानों को देख बोले- ‘ये तो किसान नहीं हैं। किसान तो मैले-कुचैले कपड़ों में, दीन-हीन हालत में रहता है।’ किसान के प्रति इस सोच को जानकर हम बिना बात किये वापिस आ गए। वे (लक्षमण सिंह) इस स्थिति से बहुत क्षुब्ध थे शीर्ष पर बैठे नेता किसान के प्रति ऐसी गन्दी सोच रखते हैं।

आज किसान को ‘अन्नदाता’ कहा जाता है। एसी बसें भेज कर उन्हें वार्ता के लिए बुलाया जाता है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, नीति आयोग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, आदि सभी जगह किसान की एंट्री है। यह बदला हु‌आ भारत है। मेज़ के आमने-सामने बैठ कर समस्याओं को हल किया जा सकता है। मेज पर मुक्का मारने से या भीड़ में रणसिंघा बजाने से क्या किसान को कुछ हासिल होगा? समझदार किसान इस मर्म को समझ गए हैं और उनकी पैठ नीति आयोग तक होने लगी है। किसान व देश के लिए यह शुभ संकेत है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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