केन्द्र सरकार ने उत्तरप्रदेश के 75 जिलों की 3130 ग्राम पंचायतों की वर्क आईडी की जांच कराने के आदेश दिए हैं। सरकार को शिकायतें मिल रहीं थीं कि ग्राम पंचायतों ने विकास संबंधी कामों का भुगतान तो कर दिया किन्तु कार्य पूरे नहीं हुवे या काम किये ही नहीं गए। इसका अर्थ यह निकलता है कि ग्राम प्रधान, सचिव तथा ठेकेदारों की मिलीभगत से पूरे उत्तर प्रदेश में बड़ा वित्तीय घोटाला हुआ है।
ज्ञातव्य है कि केन्द्रीय वित्त आयोग एवं राज्य वित्त आयोग पंचायती राज विभाग को प्रति वर्ष 40,000 करोड़ रुपये ग्रामों में विकास कार्य कराने को देते है। प्रधान, सचिव, ठेकेदार की तिगड़ी बड़ी तरकीब से इस बड़ी धनराशि को ठिकाने लगा देती है। जिस प्रकार वन महोत्सव में कागजों पर वृक्षारोपण हो जाता है, ऐसे ही ग्रामों में विकास हुआ होगा।
विगत वर्ष जब पंचायत चुनाव से पूर्व पंचायतों में निर्वाचित प्रधान नहीं थे, पंचायतों का कार्य एडीओ पंचायत देखते थे। सहायक विकास अधिकारियों व पंचायत सचिवों ने गठजोड़ कर विकास कार्यों के नाम पर आवंटित रकम खर्चकर दी थी। मुजफ्फरनगर जनपद के पंचायती राज विभाग के 5 कर्मियों से सरकारी धन की रिकवरी की गई थी। ऐसा पूरे उत्तर प्रदेश में हुआ था।
यह अपेक्षा की जाती है कि ग्राम प्रधान जनता के टैक्स के एक-एक पैसे का सदुपयोग करेंगे। खेद है कि कुछ ग्राम प्रधानों ने मांग की कि उनसे विकास कार्यों का हिसाब किताब न मांगा जाए यानी विकास के लिए आया सरकारी पैसा कहां खर्च हुआ, यह न पूछा जाए। यह भी प्रस्ताव पारित हुआ कि ग्राम पंचायत का कंप्यूटर सचिव के कार्यालय में न रख कर प्रधान जी के घर पर रखा जाए और प्रधान जी के मानदेय में वृद्धि की जाए। यह भी प्रस्ताव किया गया कि कोई प्रधान गोशाला के लिए अंशदान नहीं देगा और गोशाला के लिए भूसा भी नहीं दिया जाएगा। प्रधान जी को सरकारी बजट चाहिए और अनुदान भी लेकिन आय-व्यय का ऑडिट नहीं करायेंगे। ऐसा नियम तो दुनिया में कहीं लागू नहीं।
जो धांधली सिंचाई विभाग, पी.डब्ल्यू.डी, बिजली विभाग में चलती थी, वह पंचायती राज में भी चलने लगी? यह कैसा चौखम्भा राज है कि लोकतंत्र को प्राथमिक इकाई के कामों का सही गलत पकड़ने के लिए जांच कराने की नौबत आ गई!
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’