श्रद्धांजलिः योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
मेरी बेटी रचना तीन दशकों से नीदरलैंड (हॉलैंड) की राजधानी एम्स्टर्डम में सपरिवार रह रही है। 10 मई को उसका फोन आया- “पापा, रुड़की वाले अरुण जी नहीं रहे। 9 मई को उनका निधन हो गया।” अचानक यह मनहूस खबर सुनकर हृदय को धक्का लगा। अरुण जी यानी योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण, उनका मुस्कुराता चेहरा और पचास वर्षों के कालखंड की मधुर स्मृतियां हृदय पटल पर उभर आई। ‘देहात’ और उसके संस्थापक संपादक, पिताश्री स्व. राजरूप सिंह वर्मा से उनका निकट स्नेह संबंध था।
सरल, सौम्य, मनोहारी प्रकृति के स्वामी अरुण जी का औपचारिक परिचय लिखें तो उसके लिए अलग से पूरी किताब चाहिए। शिक्षा एवं साहित्य सेवा में उनका फलक विस्तृत था। संस्थायें उन्हें सम्मानित कर खुद गौरवान्वित होती थीं। कभी अरुण जी के विषय में विस्तार से लिखने की इच्छा है। उनकी विद्वता एवं शालीनता की थाह नहीं। हमतो उनको चलता-फिरता विश्वविद्यालय-मूविंग यूनिवर्सिटी मानते थे।
बहुत समय सेभेट न होने और एकाएक चले जाने का समाचार हृदय को विदीर्ण करता है। ‘देहात’ को रूड़की के समाचार मामचन्द गुप्ता जी भेजते थे, अरुण जी शिक्षण तथा सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं से संबंधित लेख या सूचनायें भेजते थे। तब कम्प्यूटर टाइपिंग का जमाना नहीं तथा। हस्तलेख गजब का था। यदि उपलब्ध हुआ तो उसकी अनुकृति ‘देहात’ में प्रस्तुत करेंगे। अरुण जी जैसे लोग समाज की अमूल्य धरोहर होते हैं। उनके चले जाने के बाद भी उनके महान् कार्यों को याद किया जाता है और उनकी कीर्ति पताका लहराती रहती है। ‘देहात’ परिवार की ओर से दिवंगत आत्मा को कोटि कोटि नमन।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’