मुजफ्फरनगर नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष एवं भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डा. सुभाषचन्द्र शर्मा की पोस्ट से यह दुखद जानकारी मिली कि मुर्धन्य पत्रकार श्री अखिलेश प्रभाकर (सहारनपुर) इस नश्वर संसार को छोड़ गये हैं। सन् 1927 में जन्मे अखिलेश जी 14 मई 2025 को अनन्त यात्रा पर चले गये।
हिन्दी पत्रकारिता में अखिलेश जी का योगदान अप्रतिम है। जीवन भर स्वस्थ, रचनात्मक, सृजनात्मक पत्रकारिता कर नवोदित पत्रकारों को आदर्श पत्रकारिता का मार्ग दिखाया। अपने पिता कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की यशस्वी परंपरा को कायम रखने और आगे बढ़ाने में जीवन खपा दिया। कथित आधुनिकता, नुमाइशी प्रगतिशीलता की अंधी दौड़ से विरत, अखिलेश जी ने पत्रकारिता, लेखन, संपादन के उच्च आदर्श को अक्षुण्ण रखा, यह आज के समय की महान् उपलब्धि है।
‘देहात’ का, पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा एवं मेरा प्रभाकर परिवार से निकट एवं आत्मीय संबंध रहा। ‘विकास’ एवं ‘नयाजीवन’ एक समय रचनात्मक पत्रकारिता के कीर्ति स्तम्भ थे जिनके लेखों, रिपोर्ताज व समाचारों से कई पीढ़ियों ने प्रेरणा ली। विकास प्रेस से प्रकाशित साहित्य ने निराश, हताश, भटके हुए हजारों लोगों को जीवन जीने की राह दिखाई। श्रद्धेय कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की माटी हो गई सोना, दीप जले, शंख बजे, बाजे पायलिया के घुंघरू ऐसी कालजयी कृतियां हैं, जो हिन्दी भाषियों को दीर्घकाल तक अनुप्राणित करती रहेंगी।
राजगोपाल सिंह वर्मा मेरे छोटे भाई तत्कालीन उप निदेशक, सूचना एवं जनसंपर्क, उत्तर प्रदेश ने शासकीय मासिक पत्रिका उत्तरप्रदेश का विशेषांक आदरणीय मिश्र जी को समर्पित किया था, तब वे पत्रिका के संपादक थे। वे प्रभाकर जी पर एक पुस्तक भी लिख रहे हैं जो अभी अपूर्ण है।
अखिलेश जी का जाना हम लोगों के लिए व्यक्तिगत क्षति है। ‘देहात’ परिवार उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रभु से प्रार्थना करता है। अखिलेश जी का स्नेहिल व्यक्तित्व एवं मृदुल, अपनत्व भरा व्यवहार स्मृति में सदा बना रहेगा। महाप्रस्थान पर कोटि-कोटि नमन्।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’