यह तो अजय जायसवाल की गिरफ्तारी के फौरन बाद पता लग गया था कि वह कोई अरबपति नहीं बल्कि शराब कारोबारी मनोज जायसवाल का मामूली गुर्गा था लेकिन उसकी कहानी कहीं और ज्यादा दर्दनाक है। मनोज अपने कई शराब गोदामों और तमाम दुकानों का अजय को मालिक बनाकर करोड़ों कमाता रहा लेकिन उसे उसने सहूलियत भरी जिंदगी जीने तक का मौका नहीं दिया। एसटीएफ ने जब उसे सोमवार को गिरफ्तार किया तो उसकी जेब में सिर्फ चार सौ रुपये और पैरों में फटे जूते थे। सहारनपुर की टपरी डिस्टिलरी में सौ करोड़ की टैक्स चोरी के बाद अब तक पुलिस, एसटीएफ से लेकर ईडी और एसआईटी तक यही माना जा रहा था कि अजय जायसवाल की माली हैसियत अरबों में हो सकती है, लेकिन एसआईटी की पूछताछ में उसने बताया कि उसे पता ही नहीं है कि बरेली, कानपुर और उन्नाव समेत कई शहरों में उसके नाम शराब के कई गोदाम और तमाम दुकानें हैं। अजय ने बताया कि 2017 में मनोज ने उससे उसका आधार कार्ड, पैन कार्ड और फोटो ले लिए थे। इन्हीं का इस्तेमाल कर उसने शराब गोदामों और दुकानों के लाइसेंस लिए लेकिन उसे कुछ नहीं बताया। अजय ने बताया कि उसने आज तक उन्नाव और कानपुर की शक्ल तक नहीं देखी है।

तंगी से परेशान होकर मांगा था काम मनोज ने करा दिया काम तमाम
अजय जायसवाल ने बताया कि वह मूल रूप से भमोरा के बल्लिया गांव का रहने वाला है। वहां उसकी पुश्तैनी सात बीघा जमीन और सोने चांदी की छोटी सी दुकान थी जो नहीं चली तो उसने 2004 में गांव छोड़ दिया और यहां बन्नूवाल कॉलोनी में रहने वाली रीता से शादी कर 30 गज का छोटा सा घर बना लिया।

घर के नीचे परचूनी की दुकान खोली और ऊपरी हिस्से में रहने लगा। उसके दो बेटी और एक बेटा है। 2016 में तंगहाली की वजह से पत्नी से विवाद होने के बाद दोनों अलग हो गए। शराब कारोबारी मनोज जायसवाल उसका रिश्तेदार है। घर में खाने के लाले पड़े तो वह उसके पास काम मांगने पहुंचा। मनोज ने उसे 15 हजार रुपये की नौकरी देकर आंवला क्षेत्र में अपनी एक अंग्रेजी और चार देसी शराब दुकानों की देखरेख का काम दे दिया।

अरबपति समझकर छह महीने पहले ईडी ने भी मारा था छापा
हर किसी को यही पता था कि शराब के ठेकों का मालिक अजय जायसवाल है। इसी धोखे में ईडी ने भी छह महीने पहले अजय जायसवाल के घर पर दबिश दी थी मगर उसके घर में कुछ नहीं मिला। जिस अजय जायसवाल के नाम पर मनोज जायसवाल ने शराब का पूरा साम्राज्य खड़ा किया, उसे कोई जानता तक नहीं था। उसके पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह अपना खर्चा चला पाता जबकि बरेली में ही हरुनगला के पास उसके नाम पर शराब का गोदाम था जिसकी लाइसेंस की फीस ही 20 लाख रुपये आबकारी विभाग को दी गई थी। लाखों रुपये का महीने की शराब बेचने से आय अलग थी। कानपुर और उन्नाव में भी उसके नाम शराब गोदाम थे। इन गोदामों से शराब निकालना और उसका पैसा जमा करना, यह सब मनोज खुद करता था।

15 हजार रुपये वेतन, पांच हजार चले जाते थे किराए में
टपरी डिस्टिलरी में एसआइटी के छापे के बाद जब अजय जायसवाल का नाम सामने आया तो मनोज ने उसे छिपा दिया। कर्मचारी नगर के पास साईं धर्मकांटे से कुछ दूर एक किराए के मकान में उसे ठहरवा दिया। मकान में नीचे प्लाईवुड की दुकान थी, ऊपरी हिस्से में अजय रहता था। उसके वेतन 15 हजार रुपये में से पांच हजार रुपये किराए में चले जाते थे।

पत्नी ने नहीं की बात, बेटी से बात कर फूट-फूट कर रोया
गिरफ्तारी के बाद लखनऊ में एसटीएफ ने गिरफ्तारी की सूचना देने के लिए अजय की पत्नी रीता को फोन किया लेकिन रीता ने उससे बात करने से मना कर दिया। बोली, चार साल से जिस आदमी ने अपने पत्नी-बच्चों की सुध नहीं ली, उससे क्या बात करना। अगर वह चाहे तो अपनी बेटी से बात कर लें। इसके बाद एसटीएफ ने अजय की बड़ी बेटी से बात कराई। बेटी से बात करके अजय फूट-फूट कर रोया, अपनी गलती भी मानी। एसटीएफ को बताया कि पत्नी मकान अपने नाम कराना चाहती थी। उसे शक था कि वह मकान किसी दूसरे के नाम न कर दें। इसी पर विवाद हुआ तो दोनों अलग हो गए। मकान की दीवार पर विवादित मकान लिख दिया ताकि कोई उसे खरीद न सके।