कानपुर की एक विधानसभा सीट है कल्याणपुर। यह सीट खुद में अलग ही महत्व रखती है। यहां से पास में ही गंगा का ब्रह्मावर्त घाट है जिसके बारे में कहा जाता है कि संसार का निर्माण करने से पहले ब्रह्मा ने यहां तपस्या की थी। 1857 के दौर में यहां की दो बेटियों का ज़िक्र दुनियाभर में होता है। पहली नाना और तात्या के साथ पली-बढ़ी मनु यानी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और दूसरी नाना साहब की बेटी मैनावती। कल्याणपुर सीट के चुनाव में भी इस बार दो बेटियां आमने-सामने है। पहली भाजपा नेता प्रेमलता कटियार की पुत्री और योगी सरकार में मंत्री नीलिमा कटियार और दूसरी खुशी दुबे के न्याय के साथ हर महिला और बेटी के सम्मान के लिए लड़ाई लड़ रहीं नेहा तिवारी।
कहने को तो भाजपा उम्मीदवार नीलिमा कटियार ने कम उम्र से ही राजनीति का पाठ सीखना शुरू कर दिया था। अमर उजाला से चर्चा में उनकी मां प्रेमलता कटियार कहती है कि मैं उन दिनों सामाजिक कार्यकर्ता के साथ जनसंघ के कामों भी जुड़ी हुई थी। आपातकाल के समय मुझे भी जेल जाना पड़ा था। उस समय बेटी नीलिमा महज सवा दो साल की थी। घर में बड़ी बेटी और बेटा भी था। पति की अपनी जिम्मेदारियां भी थीं। इसलिए उनके पास छोड़ नहीं सकती थी। घर में कोई बड़ी महिला नहीं थी, जो इतनी छोटी बच्ची की देख रेख कर सके। इसलिए मैं निलिमा को अपने साथ ही जेल ले गईं। करीब सात माह तक वह मेरे साथ जेल में रही। छोटी उम्र से ही मेरी बेटी ने संघर्ष कैसे होता है, वह देखना और समझना शुरू कर दिया था।
मां की उंगली पकड़कर सीखी राजनीति
उच्च शिक्षा राज्य मंत्री नीलिमा दूसरी बार कल्याणपुर सीट से चुनाव मैदान में हैं। वे छात्र राजनीति में भी हाथ आजमा चुकी हैं। विद्यार्थी परिषद, भाजपा युवा मोर्चा में होते हुए वे प्रदेश भाजपा के कई अहम पदों पर रही हैं। पार्टी और संगठन के साथ काम करने का उन्हें अच्छा खासा अनुभव है। लेकिन राजनीति का असली पाठ नीलिमा ने मां प्रेमलता कटियार से सीखा है। वे पांच बार विधायक और तीन बार राज्य सरकार में मंत्री रही हैं। प्रेमलता कटियार अमर उजाला को बताती हैं कि नीलिमा ने बचपन से मुझे जनकार्य करते हुए देखा है। मेरे कई राजनीति कामों में वे मेरा सहयोग करती थीं। चाहे वो चुनाव हो या फिर कोई पार्टी की अहम बैठक।
चुनाव के साथ परिवार को भी देती हैं समय
नीलिमा सुबह से अपने प्रचार के लिए निकल जाती हैं जो देर शाम तक जारी रहता है। इसके बाद वे कार्यकर्ताओं की बैठक लेती हैं। रात को घर पहुंचने के बाद वे अपने छोटे बेटे करण की पढ़ाई पर नजर रखती हैं। जबकि समय-समय पर मुरादाबाद में पढ़ाई कर रहे बड़े बेटे कृष्णा के साथ भी चर्चा करती हैं। बेटी के इस चुनाव में मां का कितना योगदान है, इस सवाल के जवाब में प्रेमलता कहती है कि भाजपा के कामों में कभी किसी व्यक्ति विशेष या परिवार का कोई रोल नहीं होता है। यह संगठन का काम होता है कि उसे किस व्यक्ति को चुनाव लड़वाना है और कैसे लड़ाना है। संगठन ही तय करता है कि किस व्यक्ति को क्या जिम्मेदारी देनी है। वैसे भी हमारे यहां चुनावों की तैयारी वर्षों पहले शुरू हो जाती है। बूथ स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक कार्यकर्ता का कई बार प्रशिक्षण होता है, 2017 के चुनाव में उसे मेरा मार्गदर्शन और सहयोग जरूर मिला था, लेकिन इन चुनावों में खुद अपने कामों के जरिए मैदान में हैं।

यह कहता है कल्याणपुर विधानसभा सीट का गणित
देश की आजादी के बाद कानपुर सूबा भी राजनीति का भी बड़ा केंद्र रहा है। कानपुर में लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी ने राज किया है। इसे कांग्रेस पार्टी का गढ़ भी कहा जाता था, लेकिन बदलते हालात के साथ कांग्रसियों के पैर कानपुर से उखड़ते चले गए। आज यूपी की राजनीति में कानपुर का अच्छा खासा दखल है। यहां दस विधानसभा सीटें हैं। 2017 में इनमें से सात पर भाजपा, दो पर सपा और एक पर कांग्रेस के प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। इससे पहले 2012 में इन 10 में से पांच सीट पर सपा, चार पर भाजपा और एक पर
कांग्रेस का कब्जा था।
कानपुर की कल्याणपुर विधानसभा सीट पहले कांग्रेसियों का गढ़ रही। इसके बाद इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा। भाजपा की प्रेमलता कटियार लगातार चार विधायक रही हैं। कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक ओबीसी वोटर रहते हैं, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में एसपी के सतीश निगम से चार बार की विधायक रहीं प्रेमलता कटियार हार गई थीं। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रेमलता कटियार की बेटी ने नीलिमा कटियार ने जीत दर्ज थी। सतीश निगम इस बार फिर समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं और मुख्य मुक़ाबला उनके और भाजपा की नीलिमा कटियार के बीच में है।