अहमदाबाद में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में एक विशेष अदालत ने हाल ही में इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के 38 सदस्यों को मौत की सजा और 11 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अब मौत की सजा पाए तीन दोषियों ने दावा किया है कि एक अप्रूवर (वादा माफ गवाह) ने ईर्ष्या, द्वेष और धार्मिक संप्रयादों पर मतभेज की वजह से हमारे खिलाफ गवाही दी थी। इस मामले में एक आरोपी अयाज सैयाद सरकारी गवाह बन गया था। इसके बयान ने अन्य आरोपियों को दोषी साबित करने में अहम भूमिका निभाई थी।
फांसी की सजा पाने वाले एक अपराधी शहाबुद्दीन शेख ने अदालत में कहा कि वह और अयाज सैयद अपराध शाखा के एक ही प्रकोष्ठ व साबरमती जेल की एक ही बैरक में थे। फैसले की प्रति के अनुसार शेख ने अपने बयान में कहा था कि दोनों की पहचान जेल में ही हुई थी। सैयद को पता था कि शेख को अंग्रेजी और अरबी भाषा का अच्छा ज्ञान है। शेख ने बताया कि मैं खेलों से लेकर अकादमिक प्रतियोगिताओं में सैयद को हरा देता था। इसी वह से सैयद को मेरे खिलाफ ईर्ष्या-द्वेष हो गया था।
शेख ने अंग्रेजी में दिये अपने बयान में कहा था कि वे दोनों इस्लाम के अलग-अलग संप्रदायों के मानने वाले थे। सैयद सुन्नी बरेलवी है, जो फतेहा और दरगाह में विश्वास रखते हैं, जबकि शेख गैर-बरेलवी सुन्नी है, जो इन बातों में विश्वास नहीं करते हैं। सैयद का कहमा है कि शेख ने उसके खिलाफ झूठे बयान दिए हैं और दुश्मनी पूरी की है।
इसके अलावा मौत की सजा पाने वाले एक और दोषी मोहम्मद इकबाल कागजी ने भी कहा है कि मेरे खिलाफ सैयद का बयान पूरी तरह झूठा था। कागजी ने कहा है कि हमारी न्यायिक हिरासत के 10 साल के दौरान सैयद ने मन में मेरे प्रति शत्रुता थी। उसने मान लिया था कि उसे जेल से कभी रिहाई नहीं मिलेगी, इसकी लिए वह सरकारी गवाह बन गया था। उसने जल्दी रिहा होने के लिए झूठी और फर्जी बातें बनाईं।
वहीं, मृत्युदंड पाए एक और दोषी कयामुद्दीन कपाड़िया ने कहा है कि अपराध शाखा के अधिकारियों से मिली धमकियों और लालच के चलते सैयद सरकारी गवाह बन गया था। हालांकि, अदालती आदेश में इसकी यह दलील शामिल नहीं है। बता दें कि 26 जुलाई 2008 को 70 मिनट की अवधि में हुए 21 बम धमाकों ने अहमदाबाद को हिला कर रख दिया था। इन हमलों में 50 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक घायल हुए थे। 13 साल से अधिक पुराने इस मामले में इनमें से एक आरोपी बाद में सरकारी गवाह बन गया था।