हथियारों के साथ LAC पर चीनी सैनिकों की मौजूदगी, देश के लिए हैं गंभीर सुरक्षा चुनौती: एस जयशंकर

न्यूयॉर्कः विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बड़ी संख्या में हथियारों से लैस चीनी सैनिकों की मौजूदगी भारत के समक्ष ‘‘बहुत गंभीर” सुरक्षा चुनौती है। जयशंकर ने कहा कि जून में लद्दाख सेक्टर में भारत-चीन सीमा पर हिंसक झड़पों का बहुत गहरा सार्वजनिक और राजनीतिक प्रभाव रहा है तथा इससे भारत और चीन के बीच रिश्तों में गंभीर रूप से उथल-पुथल की स्थिति बनी है।

एशिया सोसाइटी की ओर से आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा, ‘‘सीमा के उस हिस्से में आज बड़ी संख्या में सैनिक (पीएलए के) मौजूद हैं, वे हथियारों से लैस हैं तथा यह हमारे समक्ष बहुत ही गंभीर सुरक्षा चुनौती है।” पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून को हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था। चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जवान भी हताहत हुए थे लेकिन उसने स्पष्ट संख्या नहीं बताई। 

जयशंकर ने कहा कि भारत ने पिछले 30 साल में चीन के साथ संबंध बनाए हैं और इस रिश्ते का आधार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन-चैन रहा है। उन्होंने कहा कि 1993 से लेकर अनेक समझौते हुए हैं जिन्होंने उस शांति और अमन-चैन की रूपरेखा तैयार की, जिसने सीमावर्ती क्षेत्रों में आने वाले सैन्य बलों को सीमित किया, तथा यह निर्धारित किया कि सीमा का प्रबंधन कैसे किया जाए और सीमा पर तैनात सैनिक एक-दूसरे की तरफ बढ़ने पर कैसा बर्ताव करें। 

जयशंकर ने कहा, ‘‘इसलिए अवधारणा के स्तर से व्यवहार के स्तर तक, पूरी एक रूपरेखा थी। अब हमने इस साल क्या देखा कि समझौतों की इस पूरी श्रृंखला को दरकिनार किया गया। सीमा पर चीनी बलों की बड़ी संख्या में तैनाती स्पष्ट रूप से इन सबके विपरीत है।” उन्होंने कहा, ‘‘और जब एक ऐसा टकराव का बिंदु आया जहां विभिन्न स्थानों पर बड़ी संख्या में सैनिक एक-दूसरे के करीब आए, तो 15 जून जैसी दुखद घटना घटी।” 

जयशंकर ने कहा, ‘‘इस नृशंसता को ऐसे समझा जा सकता है कि 1975 के बाद जवानों की शहादत की यह पहली घटना थी। इसने बहुत गहरा सार्वजनिक राजनीतिक प्रभाव डाला है और रिश्तों में गंभीर रूप से उथल-पुथल मची है।” सीमा पर चीन ने वास्तव में क्या किया और क्यों किया, इस प्रश्न के उत्तर में विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘मुझे दरअसल कोई तर्कसंगत स्पष्टीकरण नहीं मिला है।” एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के विशेष आयोजन में जयशंकर ने संस्थान के अध्यक्ष और पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रड से बातचीत की। 

दोनों ने जयशंकर की नई पुस्तक ‘द इंडिया वे: स्ट्रेटेजीस फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड’ पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि अप्रैल 2018 में वुहान शिखर वार्ता के बाद पिछले साल चेन्नई में इसी तरह की शिखर वार्ता हुई थी और इसके पीछे उद्देश्य था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग साथ समय बिताएं, अपनी चिंताओं के बारे में एक-दूसरे से सीधी बातचीत करें। जयशंकर ने कहा, ‘‘इस साल जो हुआ, वह वाकई बड़ा विचलन था। यह न केवल बातचीत से बहुत अलग रुख था, बल्कि 30 साल में रहे संबंधों से भी बड़ा विचलन था।”

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