पंजाब में AAP की सरकार बनने के बाद, अवैध रेत खनन सहित सभी तरह के माफिया का सफाया हो जाएगा. AAP ने पंजाब के मतदाताओं से क्या वादा किया और उस पर मतदाताओं की क्या प्रतिक्रिया रही ये हमने जान लिया. अब, उन्हें पूरा करने में आने वाली चुनौतियों के बारे में सोचने की AAP को जरूरत है.
- पंजाब में बनेगी आम आदमी पार्टी की सरकार. अरविंद केजरीवाल के लिए यह एक बहुत बड़ी जीत है. लेकिन यह हुआ कैसे? ‘आप’ ने पंजाब के लोगों से ऐसा क्या वादा किया था? और पंजाब के शासन में आगे क्या चुनौतियां आएंगी? ये कुछ ऐसे सवाल है जिनका जवाब जानना जरूरी है. कांग्रेस ने अपनी आंतरिक कलह से अपना नुकसान कर लिया. वहीं कृषि कानूनों को लेकर शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन से किसान नाराज थे. इसी वजह से आम आदमी पार्टी इनसे आगे निकल गई.
- AAP ने पहले ही कह दिया था कि वे जीतने पर एक सिख को ही मुख्यमंत्री बनाएंगे. वे NRI की मोटी फंडिंग से दूर रहे जो आगे चलकर उनके लिए दोधारी तलवार साबित हो सकते थे. इन NRI के तार कट्टरवादी खालिस्तान ग्रुप से जुड़े हो सकते हैं जो कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन से अपनी गतिविधियां जारी रखते हैं. केजरीवाल इतने स्मार्ट थे कि दूसरे मुद्दों में उलझने की जगह उन्होंने अपना पूरा फोकस चुनावी रणनीति पर रखा. इसलिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सुसाशन पर जोर देने वाले अपने दिल्ली मॉडल को यहां लाने की बात की.
- पंजाब की युवा जनता यही सुनना चाहती है. लेकिन AAP को यहां भारी वित्तीय घाटे से बुरी तरह प्रभावित प्रदेश से जूझना होगा. AAP ने 2017 में पंजाब की 117 में से 20 सीटें हासिल की थीं, वह कांग्रेस से काफी पीछे थी, जिसने तब 77 सीटें जीती थीं. पंजाब राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिए कुल 59 सीटों की जरूरत है. इस बार पंजाब के मतदाता कांग्रेस के भीतर चल रही आंतरिक कलह, अमरिंदर सिंह के नई पार्टी स्थापित करने और भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही शिरोमणि अकाली दल से निराश और थक चुके थे.
- AAP ने पंजाबी मतदाताओं को कई मुफ्त चीजें और रियायतें देने का वादा किया. लेकिन अब जब वो जीत गए हैं तो उन्हें अलग मानसिकता अपनाने की जरूरत होगी. क्योंकि वादा करना एक बात है और उसे पूरा करना दूसरी. केजरीवाल द्वारा प्रचारित उनके विकास का दिल्ली मॉडल पंजाब में भी असर दिखा गया, जो कि बेरोजगारी, ड्रग्स, महंगाई, स्वास्थ्य और शिक्षा के बुनियादी ढांचे की दयनीय स्थिति से जूझ रहा है.