चार राज्यों में जीत का चौका लागने वाली भारतीय जनता पार्टी की उपलब्धियों, उत्साह-उमंग और भावी रणनीति पर अभी हम कुछ नहीं लिख रहे हैं। पांचों राज्यों के चुनावों में पार्टी की लुटिया डुबोने वाली कांग्रेस हाईकमान के सदस्यों में से एक – राहुल गांधी की प्रतिक्रिया पर कुछ जरूर कहना चाहेंगे। कांग्रेस की करारी और शर्मनाक हार पर आपने फ़रमाया है – ‘पार्टी कार्यकर्ताओं को यह हार शालीनता से स्वीकार करनी है। हम इस हार से सबक लेंगे।’
मालूम नहीं राहुल गांधी ने यह बात मनमर्जी से कही है या सुरजेवाला जैसे फर्जी शुभचिंतक ने लिख कर दी है। जो भी हो राहुल का यह कथन सौ फीसद असत्य तो है ही, छल- फरेब, धोकाधड़ी से भरा हुआ है। जब प्रथम बार देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत से जिताया, तब से राहुल ने कब-कब जनमत को शिरोधार्य कर शालीनता से कांग्रेस की हार को स्वीकार किया? बार-बार की पराजयों के कारणों और उनसे उबरने के लिए कितनी बार, कब-कब प्रयास किया? इसके उलट जिन वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने पार्टी को मजबूत करने का सद्परामर्श दिया, उन्हें बेइज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कथित हाईकमान यानि सोनिया, प्रियंका, राहुल तीनों ने सवा सौ साल से भी पुरानी कांग्रेस को रसातल में पहुंचाने की कसम खाई हुई है। पंजाब में चलती चलाती अमरिंदर सरकार को गिराकर चन्नी की ताजपोशी करने की बेहूदगी ने कांग्रेस की दुर्गती कराने वाली कथित हाईकमान से ज्यादा बड़ा दुश्मन कांग्रेस का और कोई नहीं है। मृतप्राय कांग्रेस का पुनर्जीवन तभी संभव है जब मां- बेटी- बेटा कांग्रेस को बख्श देंगे। पांचों राज्यों के चुनाव परिणामों का फलितार्थ यही है। क्या वे लोग जो खुद को सच्चे कांग्रेसी मानते हैं, उस लड़की से कैफियत तलब करेंगे जो लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे लगाती हुई कांग्रेस को रसातल में पहुंचाने में जुटी थी?
गोविंद वर्मा
संपादक देहात