भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय हुसैनीवाला सीमा पर शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के अलावा बीके दत्त की समाधि बनी है। इस शहीदी स्मारक पर हर साल मेला लगता है। यहां दूर दराज से लोग आकर उन्हें नमन करते हैं और समाधि स्थल पर माथा टेकते हैं। बता दें कि ब्रिटिश अधिकारियों ने लाहौर जेल में 23 मार्च 1931 की शाम को शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फांसी देने के बाद उनके शरीर के टुकड़े किए और बैग व बोरियों में भरकर मिलिट्री ट्रक पर फिरोजपुर की तरफ सतलुज नदी के किनारे लेकर पहुंचे। वहां नदी किनारे शहीदों के शरीर के टुकड़ों को आग लगा दी, इसी जगह पर शहीदी स्मारक बना है।
फिरोजपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर लाहौर (पाक) स्थित सेंट्रल जेल में भगत सिंह अपने साथी सुखदेव व राजगुरु के साथ बंद थे। 23 मार्च 1931 की शाम को जेल में तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई। इसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने इनके शरीर के टुकड़े करवाकर बैग और बोरियों में भरे।
रात के समय जेल के पिछले दरवाजे से लोगों की नजर से बचाकर मिलिट्री ट्रक पर लादकर फिरोजपुर पहुंचे और यहां सतलुज नदी के किनारे आग लगा दी थी। जब आग लगाई तो लोगों को इसकी भनक लग गई और लोगों ने किसी तरह आग बुझाकर शरीर के कुछ टुकड़े बचा लिए थे। जिस जगह पर आग लगाई गई, वहीं पर अब फिरोजपुर में शहीदी स्मारक बना है। यहां लोग दूर-दराज से शहीदों की समाधि पर माथा टेकने पहुंचते हैं।
हर साल 23 मार्च को शहीदी मेला लगता है। यहां पर शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बीके दत्त (बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार फिरोजपुर में शहीदों की समाधि के पास करें) संस्कार के बाद उनकी समाधि शहीदी स्मारक में बनाई गई। जबकि शहीदी स्मारक से कुछ दूर भगत सिंह की मां विद्यावती (पंजाब माता) की समाधि बनी है।
1971 के युद्ध में पाक सेना उखाड़कर ले गई थी शहीदों के बुत्त
वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाक सेना ने हुसैनीवाला सीमा से सटे कई गांवों पर कब्जा कर लिया था। शहीदी स्मारक भी उनके कब्जे में आ गया था। जबकि भारतीय सेना ने फाजिल्का की तरफ पाकिस्तान के कई गांव अपने कब्जे में ले लिए थे। दोनों देशों ने बीच एक समझौते के तहत एक-दूसरे के इलाके छोड़े तो पाक सेना शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु के तांबे के बुत्त उखाड़ कर ले गई थी। जो कई साल बाद पाक ने भारत को लौटाए थे।