‘समाज को सुरक्षित करते कश्मीरी पंडित तो नहीं छोड़ना पड़ता अपना घर’: मोहन भागवत

‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गोरखपुर में बड़ा बयान दिया है. फिल्म का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि यदि कश्मीरी पंडितों ने समाज को सुरक्षित किया होता तो उन्हें कश्मीर से बाहर नहीं आना पड़ता. उन्होंने कहा कि हमें सबसे पहले समाज को सुरक्षित करना होगा. मोहन भागवत गोरखपुर के तीन दिवसीय प्रवास के अंतिम दिन योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में कुटुंब प्रबोधन कार्यक्रम के तहत संघ और विचार परिवार के सदस्यों और परिवार के लोगों को संबोधित कर रहे थे. इसके बाद संघ प्रमुख मंगलवार रात वाराणसी के लिए रवाना हो गए.

समाज की महत्वपूर्ण इकाई कुटुंब

संघ प्रमुख ने कुटुंब प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमें सबसे पहले समाज को सुरक्षित करना चाहिए. अगर समाज सुरक्षित नहीं रहेगा तो न कुटुंब और न ही व्यक्ति सुरक्षित रहेगा. उन्होंने कहा कि कुटुंब और व्यक्ति समाज की ही इकाई हैैं. संघ प्रमुख ने कहा कि अपने देश की परंपरा में समाज की महत्वपूर्ण इकाई कुटुंब है, व्यक्ति नहीं.

पाश्चात्य संस्कृति में सिर्फ व्यक्ति प्रमुख

वहीं संघ प्रमुख ने पाश्चात्य संस्कृति पर हमला करते हुए कहा कि इसमें सिर्फ व्यक्ति प्रमुख होता है. लेकिन हमारे यहां किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुटुंब से होती है. इसलिए कुटुंब का सुरक्षित होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि कुटुंब सुरक्षित रखने के लिए भाषा, भोजन, भजन, भ्रमण, वेषभूषा और भवन के माध्यम से अपनी जड़ों से जुड़ना होगा. उन्होंने  कहा कि परिवार के साथ हमें समाज की भी चिंता करनी होगी. सप्ताह में एक बार परिवार अपने कुटुंब के साथ में भोजन ग्रहण करें. अपने पूर्वज, रीति-रिवाज, क्या करना चाहिए और क्या छोडऩा चाहिए, इन विषयों पर चर्चा करें और एक मत होकर कार्य करें.

विशेष अवसरों पर परंपरागत वेषभूषा जरूर पहनें

उन्‍होंने मणिपुर का जिक्र करते हुए कहा कि यहां के लोगों की तरह हमें विशेष अवसरों पर अपनी परंपरागत वेषभूषा जरूर पहननी चाहिए. हमें इस बात की चिंता होनी चाहिए कि अपने पूर्वजों की रीति का पालन कर रहे या नहीं. ऐसा करके ही अपनी संस्कृति को सुरक्षित रख सकते हैं. संस्कृति की रक्षा कुटुंब की मजबूती से ही संभव है.

दो बार संघ पर लगा प्रतिबंध, पर नहीं मांगी माफी

संघ का उदाहरण देकर भागवत ने कहा कि दो बार प्रतिबंध लगने के बाद भी किसी स्वयंसेवक ने कभी माफी नहीं मांगी, क्योंकि उनके साथ पूरा परिवार खड़ा था. परिवार खड़ा रहा तो संघ का कार्य निरंतर चलता रहा. ऐसे में स्वयंसेवकों के परिवार के लोगों को भी संघ के बारे में जानकारी होनी चाहिए.

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