अवैध बस्तियां, अतिक्रमण और अदालतें !


सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग पीठों ने 25 अप्रैल, 2022 को शहरों में कुकरमुत्तों की तरह फैल रही अवैध कॉलोनियों तथा इन अवैध बस्तियों के हटाये जाने के प्रश्न पर अन्तर्विरोधी दिखने वाले विचार दिखे हैं। जस्टिस एल. नागेश्वर राव तथा जस्टिस बी. आर. गवई की पीठ ने सोशल एक्टीविस्ट जुवादी सागर राव की याचिका पर विचार करते हुए देश भर में पनप रही अवैध बस्तियों के प्रसार पर चिन्ता प्रकट की है और कहा है कि इन अवैध बस्तियों से शहरों का विकास प्रभावित होता है। शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायण को ‘न्यायमित्र’ नियुक्त कर कहाकि हमने देखा है कि हैदराबाद और केरल में अवैध बस्तियों के कारण बाढ़ ने कैसे कहर बरपाया था। कोर्ट ने न्यायमित्र से दो सप्ताहों के भीतर अपने सुझाव पेश करने को कहा। अदालत ने राज्य सरकारों से कहा है कि वे शहरों में अवैध कॉलोनियां बनने को रोकें।

इसी दिन इसी कोर्ट के जस्टिस के. एम. जोसेफ तथा जस्टिस हृषिकेश ने दिल्ली की पॉश कॉलौनी सरोजनीनगर में सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बनाई गई 200 झुग्गियों को हटाने के केन्द्र सरकार के अभियान को रोकने का आदेश जारी कर दिया। यह भी उल्लेखनीय है कि जब से पड़ौसी देश म्यामार से रोहिंग्या मुसलमान बंगलादेश के रास्ते भारत में घुसपैठ करके देश के विभिन्न हिस्सों में बस्तियां बनाने लगे हैं तब से अवैध बस्तियों में और इजाफा हुआ है तथापि यह समस्या अवैध बंगलादेशियों व रोर्हिग्याओं के आगमन से काफी पहले से ही पूरे देश में बुरी तरह पांव पसारे हुए है। दिल्ली में 5-6 स्थानों में झुग्गियां और टीनशेड आदि डाल कर सैकड़ों रोहिंग्या रह रहे हैं। पिछले वर्ष सरिता विहार के समीप मदनपुर खादर में उत्तरप्रदेश की सिंचाई विभाग की 5 एकड़ से अधिक भूमि पर रोहिंग्याइयों ने अवैध कब्जा कर लिया था। तब यह मामला जोर-शोर से उठा था।

जस्टिस जोसेफ व जस्टिस हृषिकेश की पीठ के समक्ष केन्द्र सरकार की ओर से एडीशनल सोलीसिटर जनरल के.एम. नटराजन ने दलील दी कि कि किसी तरहसे आधार कार्ड बनवाने में सफल व्यक्ति सरकारी जमीन पर कब्जे का हकदार नहीं हो जाता किन्तु अदालत ने अवैध रूप से बनाई गई झुग्गियों को हटाने का अभियान तुरन्त रोकने का आदेश जारी कर दिया। शीर्ष कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के वकील की दलील स्वीकार करते हुए कहाकि झुग्गीवासियों के पास भी व्यक्तिगत अधिकार हैं। उनकी रक्षा होनी चाहिए। कोर्ट के इन विचारों पर हम कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। दोनों मामलों की वस्तुस्थिति पृथक-पृथक हो सकती है अतः माननीय न्यायालय ने ठीक ही आदेश दिये होंगे।

यहां हम माननीय सुप्रीम कोर्ट के अक्तूबर, 2021 के एक निर्णय की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं। फरीदाबाद (हरियाणा) के ग्राम भौरी में अरावली वन क्षेत्र मे बने लगभग दस हजार मकानों को गिराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था। न सिर्फ मकानों को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया अपितु स्पष्ट कहा गया कि नगर निगम के सक्षम अधिकारी अवैध निर्माण हटा कर कार्यानवयन की रिपोर्ट प्रस्तुत करें अन्यथा अदालत की अवमानना का दंड भुगतने को तैयार रहें। तब हजारों मकानमालिकों ने मानवता का हवाला देकर गुहार लगाई थी किन्तु उस समय अदालत का नजरिया दूसरा था।

अवैध बस्तियों और घुसपैठ तथा घुसपैठियों के कथित मानवीय अधिकारों से राजनीतिक दलों के स्वार्थ मजबूती से जुड़े हैं। जब फखरुद्दीन अली अहमद असम में प्रभावशाली स्थिति में थे तब असम के तत्कालीन वित्तमंत्री कामाख्या प्रसाद त्रिपाठी ने इन्दिरा गांधी को पत्र लिख कर सूचित किया था कि पूर्वी पाकिस्तान से हजारों लोग असम के सीमावर्ती इलाकों में अवैधरूप से बस गये हैं। श्री त्रिपाठी ने यह भी कहा था कि इन अवैध बस्तियों में पाकिस्तान की करेंसी चलती है और मदरसों में पाकिस्तानी किताबें पढ़ाई जा रही हैं। तब बंगलादेश नहीं बना था। इन्दिरा जी ने फखरुद्दीन अली साहब को दिल्ली बुला कर पहले कैबिनेट मंत्री और बाद में राष्ट्रपति बना दिया। कामाख्या प्रसाद कांग्रेस से निकाल दिये गए। असम व उत्तरपूर्वी राज्यों में बाद में कांग्रेस, वाम दलों व ममता ने इन करोड़ों घुसपैठियों का इस्तेमाल किया और कर रहे हैं।

आप कह सकते हैं कि घुसपैठ और अवैध बस्तियां अलग-अलग मसले हैं। सब जानते हैं कि ये कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़े भी हैं। चलिये दिल्ली की ही बात करते हैं। एक समय कांग्रेस नेता एच. के. एल. भगत दिल्ली के बेताज बादशाह माने जाते थे। उनके कार्यकाल में बड़ी संख्या में अवैध बस्तियां बसीं और चुनाव से पहले वैध घोषित की गईं। जिस दिल्ली के यमुना तट पर आध्यात्मिक समारोह करने पर श्रीश्री रविशंकर पर 4 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था, उसी यमुना के किनारे बनी झुग्गियों को हटाते समय दिल्ली कांग्रेस की नेत्री किरण चौधरी जेसीबी पकड़ कर लटक गई थीं। अवैध बस्तियों को वैध घोषित करने में भाजपा भी पीछे नहीं रही।

यक्ष प्रश्न यह है कि अवैध बस्तियां या अतिक्रमण हटाने के अलग-अलग मापदंड क्या न्यायोचित हैं? पक्ष-विपक्ष के चेहरे देख कर फैसले नहीं होने चाहियें।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here