हिंदी पत्रकारिता दिवस

इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि हिंदी पत्रकारिता दिवस पर समाचारपत्रों व पत्रकारों की प्रायः सभी समस्याओं एवं मुद्दों पर विचार विमर्श होता है, सिर्फ हिंदी पत्रकारिता पर चर्चा नहीं होती। 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हिंदी के पहले समाचारपत्र कलकत्ता के ‘उदन्त मार्तण्ड’ से चर्चा आरंभ होती है और अखबारों की तथा पत्रकारों की आर्थिक स्थिति व सरकार (चाहे किसी भी दल की हो) पर दोषारोपण एवं उपेक्षा पर जा कर ख़त्म हो जाती है।

हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाने का श्रेय उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक रहे वाराणसी के पत्रकार एवं साहित्यकार ठाकुर प्रसाद सिंह को जाता है। एक समय ऐसा था जब उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशालय में हिंदी के पत्रकारों, साहित्यकारों तथा कला एवं संस्कृति प्रेमियों की भरमार थी। काशीनाथ उपाध्याय ‘भ्रमर’, लीलाधर शर्मा ‘पर्वतीय’, सुरेश चंद्र जोशी, बलभद्र मिश्र, ध्रुव मालवीय एवं ठाकुर प्रसाद सिंह जैसे हिंदी प्रेमियों की तूती बोलती थी। उस समय और बाद में भी सूचना निदेशक पद आईएएस को ही दिया जाता था। आज भी यही स्थिति है। ठाकुर प्रसाद सिंह व सरला साहिनी इसके अपवाद थे।

जब ठाकुर प्रसाद सिंह प्रोन्नत होकर सूचना निदेशक बने तब उन्होंने अपने सहयोगियों से विचार-विमर्श कर कहा कि कोई न कोई दिन किसी न किसी के रूप में मनाया जाता है। क्यों न किसी विशेष दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाये ? उन्होंने खुद पहल करते हुए उत्तर प्रदेश के सूचना अधिकारियो को 30 मई को सूचना विभाग में सभी पत्रकारों को आमंत्रित कर ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ मनाने का आदेश दिया। साथ ही राज्य मुख्यालय से काशी के विख्यात पत्रकार बाबूराम विष्णु पराडकर, पत्रकार शिरोमणि गणेश शंकर विधार्थी के चित्र और हिंदी पत्रकारिता से संबधित इतिहास की पुस्तिका भी भिजवाई।

बाद में पत्रकारों के अलग-अलग संगठनों ने हिंदी पत्रकारिता दिवस पर बैठकें आयोजित करना शुरू की किन्तु उनकी विषयवस्तु ‘हिंदी’ नहीं रही। आज स्थिति यह है कि हिंदी के बड़े-बड़े अखबार तथा हिंदी चैनल अनावश्यक रूप से पारिभाषिक अंग्रेजी शब्दों का बढ़चढ़कर प्रयोग करने लगे हैं। गन्ना आयुक्त के बजाय केन कमिश्नर, जिला गन्ना अधिकारी को डीसीओ, पश्चिमी उत्तर प्रदेश को वेस्ट यूपी और जिला अधिकारी को डीएम तथा मुख्यमंत्री को सीएम छापकर इन अखबारों के सम्पादक मूछें मरोड़ते हैं। नवभारत टाइम्स तो खुद को ‘एनबीटी’ लिखकर गौरवान्वित होता है। नये नये अंग्रेजी शब्द जैसे ‘रेस्क्यू’, रोडरेज आदि हिंदी समाचारों में जबरदस्ती ठूसे जा रहे हैं। क्या हिंदी के बड़े अखबारों के पास हिंदी शब्दावली नहीं रही ? अच्छा हो हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हिंदी के पत्रकार इस और भी ध्यान दें।

गोविन्द वर्मा
संपादक देहात

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