दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट की अतिरिक्त सत्र अदालत ने गुरुवार को अल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। जुबैर पर अपने ट्वीट के माध्यम से धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (एफसीआरए) के उल्लंघन का आरोप है। अदालत ने अभी तक गवाहों व शिकायतकर्ता के बयान न दर्ज करने पर सवाल उठाया है।
पटियाला हाउस कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायालय में न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला 15 जुलाई तक के लिए सुरक्षित रख लिया। जुबैर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि समाचार प्लेटफॉर्म में योगदान की एक्सेल शीट में पाया गया +92 पाकिस्तान कोड का संकेत नहीं था, यह गणना के लिए एक सूत्र था। उन्होंने जुबैर के खिलाफ अभियोजन पक्ष के इस आरोप को गलत बताया कि उन्होंने पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों से विदेशी योगदान प्राप्त करके एफसीआरए के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
अदालत ने इससे पहले विशेष लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव से पूछा कि क्या आपने उस व्यक्ति का बयान दर्ज किया है? अभी तक आपने बयान ही नहीं लिया है, आपने कितने बयान दर्ज किए हैं? कितने लोगों ने ट्वीट से नाराजगी महसूस की। श्रीवास्तव ने ट्वीट का हवाला दिया तो अदालत ने उनके तर्क को खारिज करते हुए कहा आप ट्वीट पर नहीं जा सकते। आपको सीआरपीसी का पालन करना होगा यह एक प्रक्रिया है। आपको लोगों के बयान दर्ज करने होंगे।
अधिवक्ता ग्रोवर ने रेजरपे के सीईओ के रिकॉर्ड बयानों को अदालत के समक्ष रखा कि केवल भारतीयों से योगदान प्राप्त हुआ था। +92 एक्सेल शीट है जहां से उन्होंने योगदान दिखाया है। वे कहते हैं कि यह पाकिस्तान से है। यह एक्सेल में गणना के लिए एक सूत्र है न कि कोड। उन्होंने कहा अल्ट न्यूज को भारतीय या विदेशी मुद्रा में कोई विदेशी योगदान नहीं मिला है। यदि मैं एक भारतीय नागरिक हूं जिसका भारतीय बैंक खाता है और मैं विदेश में रहता हूं, तो मेरा एक अलग आईपी पता हो सकता है। भारतीय इंजीनियरों की हर जगह मांग है। मैं नोकिया, गूगल में प्रतिनियुक्ति पर हो सकता हूं।
ग्रोवर ने एक ट्वीट के लिए धार्मिक भावनाओं को आहत करने से संबंधित अपराध पर चर्चा की, जिसमें उन्होंने कहा कि वह चार साल का था। किसी का चार साल पुराने ट्वीट के लिए आहत महसूस करना अपराध नहीं है। उन्होंने एक बार फिर बताया कि विचाराधीन ट्वीट 1983 की फिल्म ‘किस्सी से ना कहना’ का एक स्टिल था। विचाराधीन फिल्म का दृश्य अदालत में चलाया गया। उन्होंने कहा पूरा होने वाला पहला घटक (समूहों के आरोपों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) दो समुदाय हैं। हनुमान जी हिंदू देवता हैं। दूसरा समुदाय कहां है? मेरे खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला भी नहीं बनता है।
वहीं एसपीपी श्रीवास्तव ने दावा किया कि अल्ट न्यूज को कई अलग-अलग जगहों से भुगतान प्राप्त हुआ। अदालत ने उनके तर्क पर पूछा कि इससे एक विदेशी नागरिक को क्या लाभ होगा?
एसपीपी ने कहा इस तरह उन्हें बहकाया जा रहा है। बड़ी चतुराई से वे यह सब कर रहे हैं। और भी फिल्में हैं। आपने एक तस्वीर ली है और इसे सोशल मीडिया पर डाल दिया है…आपने भगवान हनुमानजी को क्यों चुना है? एफसीआरए मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रेजरपे के जरिए जुबैर के खाते में 56 लाख रुपये आए। वहीं मोहम्मद जुबैर ने उत्तर प्रदेश में अपने खिलाफ दर्ज सभी छह एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।