सी. बी. गुप्ता का पुनीत संस्मरण !

चन्द्रभानु गुप्त, जो सी.बी. गुप्ता के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे, कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से थे। जिस प्रकार सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का लौह पुरुष माना जाता था, गुप्ता जी को उत्तरप्रदेश का लौह पुरुष माना जाता था। अलीगढ़ के अतरौली कस्बे में 14 जुलाई, 1902 में हीरालाल गुप्ता के घर उनका जन्म हुआ। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष, अ.भा. कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष एवं अनेक विभागों के मंत्री तथा तीन बार मुख्यमंत्री रहे।

ऐसे दिग्गज, सेवाभावी जनसेवक नेता के जन्मदिन पर सिर्फ भाई सुधीर आर्य बिधूड़ी जी तथा बहिन रमा नागर जी ने फेसबुक एकाउंट पर सी.बी. गुप्ता जी को याद किया। नेहरू-इन्दिरा खानदान का झंडा उठाने वाले किसी कांग्रेस नेता को उनकी याद नहीं आई। कारण स्पष्ट है नेहरू और इन्दिरा परिवार के वंशवाद की चौकड़ी से बाहर हर नेता को पराया मान लिया जाता है।

सी.बी. गुप्ता जी के संबंध में लिखने को बहुत कुछ है। फिर किसी अवसर पर विस्तार से लिखुंगा। कुछ संस्मरण गुप्ता जी के महान व्यक्तित्व की याद दिलाते हैं। तब चुनावी संघर्ष में शामली के कांग्रेस प्रत्याशी लाला सलेकचन्द सिंघल की ग्राम ऊन में दुर्भाग्यपूर्ण हत्या हो चुकी थी। पूरे जिले में शोक व ग़म का माहौल था। गुप्ता जी जिला अस्पताल का निरीक्षण कर पी. डब्ल्यू. डी. के बंगले पर पहुंचे। वहां कांग्रेसजनों का जमावड़ा था। शहर कांग्रेस के अध्यक्ष तथा अन्य लोगों ने तत्कालीन जिला अधिकारी के विरुद्ध नारे लगाने शुरू कर दिये। कांग्रेसजन चाहते थे कि कलक्टर का तुरंत तबादला हो और उनके विरुद्ध कार्यवाही की जाए। इस पर गुप्ता जी भड़क गए। उनके हाथ में एक छोटा सा रूल था उसे वहां खड़ी जीप के बोनट पर कई बार मार के हल्ला मचाने वाले कांग्रेसजनों को डांटा। बोले- यह बद्तमीजी बन्द कीजिए। कलक्टर सरकार का प्रतिनिधि है। इनके साथ बेहूदगी बर्दाश्त नहीं होगी। कोई शिकायत है तो सलीके से शिकायत कीजिए, जरूरी हुआ तो कार्यवाही होगी किन्तु बेहूदगी हरगिज़ बर्दाश्त नहीं होगी। गुप्ता जी का यह रूप देख हल्ला मचाने वाले शान्त हो गए।

किसी भी विषय पर तत्काल निर्णय लेने में गुप्ता जी माहिर थे। एक घटना ‘देहात‘ के संस्थापक संपादक स्व. राजरूप सिंह वर्मा से संबंधित है। गुजफ्फरनगर में तैनात सहायक निबंधक सहकारी समितियां के भ्रष्टाचार से सहकारिता विभाग में त्राहि-त्राहि मची थी। पिताश्री ने भ्रष्टाचार के पुष्ट प्रमाण देते हुए उसकी हरकतों के संबंध में बड़ा लेख ‘देहात‘ में विस्तार से प्रकाशित किया। इस पर ए.आर. ने साठगांठ कर सरकार की ओर से मुकदमा संपादक ‘देहात‘ पर दायर करा दिया। तब जगतप्रकाश अग्रवाल डी.जी.सी. थे। उन्होंने कहा कि मुकदमे में कुछ जान नहीं है। फिर भी मुकदमा वापस हो जाये तो ठीक है। सी.बी.गुप्ता जी जगत बाबू के चाचा लगते थे। उन्हें मानते भी खुब थे। उन्होंने एक पत्र गुप्ता जी के नाम लिख कर सारी कैफियत बताई।

पिताजी मुख्यमंत्री द्वारा बुलाये पत्रकार सम्मेलन में भाग लेने लखनऊ गए किन्तु बैठक में कोई बात नहीं हुई। अगले दिन पान दरीबा पहुंचे जो गुप्ता जी का निवास स्थान था। घुटने तक का जांघिया व जेबदार खद्दर का बनियान पहने आगंतुकों से मिल रहे थे। पिताजी का नंबर आया तो बोले- हाँ बताइए। पिताजी ने कहा- खड़े-खड़े क्या बताऊं, इससे अच्छी स्थिति तो कल थी जब आप प्रेसमीट में थे। गुप्ता जी बोले- तुम तो मुझे डाट रहे हो। पिताश्री ने कहा- आप रोज़ाना सैकड़ों लोगों को डाँटते हैं, मैंने सही बात कह दी तो बुरा क्यों माना। फिर एक कुर्सी पर खुद बैठे, दूसरी पर पिताश्री को बैठाया। सारी बात सुनी। पिताश्री ने जगत जी का पत्र जेब में ही रखे रखा, दिया नहीं। सी.बी.गुप्ता का व्यवहार उन्हें ठीक नहीं लगा।

मुजफ्फरनगर लौटने पर जगत जी से मिले और उनका पत्र वापस कर सारी घटना बताई। सुनकर वे जोर से हंसे और बोले- तुम्हारा काम हो गया। हमारे चचा की यही अदा है।

दूसरे दिन डी.एम गुजफ्फरनगर को मुख्यमंत्री की ओर
से वायरलैस आया जिसमें ए०आर० के तबादले और मुकदमा
वापस लेने का आदेश था।

बदलते हुए राजनीतिक परिवेश में चाहे पेशेवर नेता उन्हें भूल
जायें किन्तु अपनी सेवाओं से सी.बी. गुप्ता ने जो स्थान बनाया है, इतिहास उसे भुला नहीं सकता। जन्मदिन पर उनको शत शत नमन।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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