दिल्ली बनाम केंद्र विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में जल्द शुरू होगी सुनवाई

दिल्ली में केंद्रीय प्रशासनिक सेवा क्षेत्र में नियुक्ति और तबादलों के अधिकार पर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच कानूनी खींचतान को लेकर दाखिल याचिकाओं पर संविधान पीठ सुनवाई करेगी. 

चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने आज कोर्ट में कहा कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ गठित कर दी गई है. फिलहाल नियुक्ति और तबादलों का अधिकार केंद्र सरकार यानी उपराज्यपाल के पास है. लेकिन दिल्ली सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक केंद्र सरकार यानी उनके नुमाइंदे उप राज्यपाल को सिर्फ जमीन, पुलिस और लोक आदेश यानी कानून व्यवस्था में अधिकार मिला था. सर्विस मैटर्स पर कोर्ट ने कोई स्पष्ट नहीं किया तो केंद्र ने उस पर कब्जा जमा लिया. 

केंद्र ने दी थी ये दलील 

सिविल सर्विसेस पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि अफसरों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का नियंत्रण उसके पास होना चाहिए, क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है और दुनिया भारत को दिल्ली की नजर से देखती है.  

केंद्र ने पास किया था नया कानून 

केंद्र सरकार ने साल 2021 में गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) पास किया था. इसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को कुछ और अधिकार दे दिए गए थे. आम आदमी पार्टी ने इसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. 

दिल्ली की व्यवस्था कैसी है?  

12 दिसंबर 1931 को अंग्रेजों ने दिल्ली को ब्रिटिश इंडिया की राजधानी बनाया. जब देश आजाद हुआ तो राज्यों को पार्ट A, पार्ट B और पार्ट C में बांट दिया गया. दिल्ली को पार्ट C में रखा गया. आजादी के बाद दिल्ली को ही भारत की राजधानी बनाया गया. 1956 तक दिल्ली की अपनी विधानसभा होती थी, लेकिन 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून आया. साल 1991 में नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट पास हुआ. इससे 1993 में दिल्ली में फिर से विधानसभा का गठन हुआ. इस कानून के मुताबिक, यहां केंद्र और एनसीटी की सरकार, दोनों मिलकर शासन करेंगी. इस कारण कुछ शक्तियां केंद्र और कुछ दिल्ली सरकार में बंटी. इस वजह से गतिरोध पैदा होता है.  

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिया था ये फैसला 

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में फैसला दिया था कि जमीन, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था को छोड़कर दिल्ली सरकार को बाकी सभी मसलों पर कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन अब केंद्र का कहना है कि उस फैसले का मतलब ये नहीं है कि दिल्ली सरकार को उन तीन को छोड़कर बाकी सभी पर कानून बनाने का अधिकार मिल गया. वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए इसे राज्य के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. दिल्ली में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति निवास के अलावा संसद और दूतावास हैं, जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र की है. 

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