जम्मू-कश्मीर में आधे वेतन पर काम कर रहे एक लाख अस्थायी कर्मचारी

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति को तीन साल और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बने 35 माह बीतने के बाद भी न्यूनतम वेतन अधिनियम लागू नहीं हुआ है। जम्मू-कश्मीर में 800 केंद्रीय कानूनों को लागू करने के केंद्र व प्रदेश सरकार के दावों के बीच सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों के अस्थायी कर्मचारी न्यूनतम वेतन अधिनियम से करीब आधे वेतन पर ही काम करने को मजबूर हैं।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत कार्यरत अस्थायी कर्मचारियों को 18000 रुपये मासिक न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए। पीएचई डेलीवेजर्स यूनियन के प्रवक्ता रवि हंस का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में जलशक्ति विभाग में 32 हजार अस्थायी कर्मचारी काम कर रहे हैं। 

न्यूनतम वेतन लागू न होने से महंगाई के दौर में परिवार आर्थिक तंगहाली से गुजर रहा है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 11 नवंबर 2020 को मुलाकात कर न्यूनतम वेतन अधिनियम का मुद्दा उठाया था। उन्होंने जिला विकास परिषद चुनाव के बाद मसले के हल की बात कही, लेकिन हुआ कुछ नहीं। उपराज्यपाल के प्रधान सचिव नीतीश्वर कुमार से नौ मार्च 2022 को मुलाकात कर नियमितीकरण व न्यूनतम वेतन अधिनियम का मामला फिर उठाया गया। उनसे मिला आश्वासन भी हकीकत नहीं बन पाया। 

बिजली विभाग डेलीवेजर्स यूनियन के अध्यक्ष अखिल शर्मा का कहना है कि विभाग में 12 हजार डेलीवेजर काम कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 समाप्त होने पर न्यूनतम वेतन अधिनियम की उम्मीद जगी। तीन साल बाद भी उनके हाथ मायूसी ही लगी है। 

प्रत्येक कर्मी को सालाना एक लाख का नुकसान

प्रदेश में न्यूनतम वेतन अधिनियम लागू न होने से प्रत्येक अस्थायी कर्मचारी को हर माह 8700 रुपये और सालाना 1,04,400 रुपये का नुकसान हो रहा है। इसी तरह से 35 माह में प्रत्येक कर्मचारी को 3,04,500 रुपये का नुकसान हो चुका है। इस प्रकार एक लाख कर्मचारियों को अब तक 30 अरब 45 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।  

जम्मू-कश्मीर में न्यूनतम वेतन अधिनियम कब लागू होगा उस पर कोई कमेंट नहीं करना चाहता। जब सरकार इस अधिनियम को लागू करेगी तो बता दिया जाएगा। – डॉ. पीयूष सिंगला, प्रशासनिक सचिव, सामान्य प्रशासनिक विभाग जम्मू-कश्मीर।

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